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________________ सस्कृत के जन पौराणिक काव्यो की शब्द-सम्पत्ति ४३१ दाभिसारसीवी रशूरसेनापरान्तका । विदेहसिन्धुगान्धारयवनाश्चेदिपल्लवा ।। काम्बोजारवाहीकतुरुशककया । निवेशितास्तथान्येऽपि विभक्ता विषयास्तदा ।।२२ ४ उत्तरपुराणकार गुणभद्र अमी च विषया सुपरिभाषिता । महाकच्छा तथा कच्छकावत्यावर्तलागला ।। पुष्कला पुष्कलावत्यो वत्सा नाम्ना च कीतिता। सुवासा च महावत्सा विख्याता वत्सकावती।। रम्या च रम्यकाख्या रमणीया मगलावती । पा सुपड़ा महापमा पावत्यभिख्यया ।। शखा च नलिनान्या च कुमुदा सरिता परा। वा सुवप्रा च महावप्रया वप्रकावती ।। गन्धा सुगन्धा गन्धावत् सुगन्धा गन्धमालिनी। एताश्च राजधान्योऽत्र कुमारालोकयस्फुटम् ।। क्षेमा क्षेमपुरी चान्याऽरिष्टाऽरिष्टपुरी परा। खड्गाख्यया च मजूषा चौषधी पुण्डरी किणी॥ सुसीमा कुण्डला सार्द्धमपराजितसशया । प्रभकराकवत्याख्या पावत्यभिधोदिता। शुभा शब्दाभिधाना च नगरी रत्नसचया। अश्वसिंहमहापुयाँ विजयादिपुरी ५।। अरजा विरजाश्चैवमशोका वातशोकवाक । विजया जयन्ती च जयन्ती चापराजिता ।। अथ चक्रपुरी खड्ापुर्ययोध्या च वणिता । अवध्येत्यथ सीतोत्तराभाभागामे रुस निधे ।।२३ इसी प्रकार विद्या-सम्बन्धी शब्दावली के एकन्न सन्निवेश का उदाहरण लिया जा सकता है। रविषण और जिनसेन ने अपने 'पपुराण' और 'हरिवशपुराण' मे विद्यापरक पारिभाषिक शब्दावली का अवसर निकालकर परिगणनात्मक शैली मे उल्लेख किया है रविषण सक्षे५॥ करिष्यामि विद्याना नामकीतनम् । अर्थसामर्थ्यतो लब्ध भवावहितमानस ॥
SR No.010482
Book TitleSanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
PublisherKalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
Publication Year1977
Total Pages599
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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