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________________ १९वी २०वी शताब्दी के जैन कोशकार और उनके कोगो का मूल्याकन ४१५ प्रवृत्ति को कोई महत्व न दिया गया हो । विशुद्ध तथ्यान्वेषणा की दृष्टि से ही ऐसी योजनाओ का सूत्रपात किया जाना चाहिये । १८ जिस तरह १६०६ ई० मे प० गोपालदास वरैया की 'जैन सिद्धान्त प्रवेशिका" प्रकाशित हुई उमसे कही अधिक वैज्ञानिक विधि से कुछ "जेवी विश्वकोशीय कोश" प्रकाशित होने चाहिये । ये कोश आकार मे लघु हो, किन्तु इनकी प्रामाणिकता और पूर्णता अमदिग्ध हो । अग्रेजी मे ' एविज्ड" कोशो की परम्परा है, हम भी इस तरह की परम्परा का श्रीगणेश कर सकते हैं । ये जेवी कोश सभी कोटि के हो सकते हैं शव्दकोश, विपय-कोश, अन्य-कोश, ग्रन्यकारकोश, । इस तरह के लोकप्रिय कोशो के प्रकाशन की योजनाओ को मूर्तरूप देते समय वडे उत्तरदायित्व की भावना से काम करना चाहिये, वस्तुत एक वारह मासी कोश-विभाग ही किसी जैन शोध सस्थान मे स्थापित करना चाहिये, जिसमे कोश-सकलन, सपादन, संशोधन, परिवर्धन के अलावा कोई काम हो ही नही। १६ भारत से बाहर कई देशो में कोश-निर्माण को बडी गभीरता से लिया जाता है । कई ऐसे कोश हैं जिनके संपादन के लिए योग्य सपादक नियुक्त है, जो आगामी मस्करणो की तैयारी में लगे रहते है । ये सपादक अधुनातन प्रकाशनो का अध्ययन करते है और जो भी शब्दसपदा उन्हे सकलनीय दिखाई देती है, उस पर उत्तरदायी भावना से विचार करते हैं और फिर उसे भावी संस्करणो मे स्थान देते हैं। ऐसे शब्दो को जो अप्रयुक्त होते है, नये सस्करणो मे से निकाल लिया जाता है। लेखक को विश्वास है कि किसी सस्या अथवा विश्वविद्यालय के जैन विद्या विभाग मे एक ऐसी शाखा स्थापित होगी, जो सतत कोश-रचना का अध्ययन करेगी और एक ऐसा सर्वसम्मत मानक कोश प्रकाशित करेगी, जिसके अभिनव सस्करणो की जैन विद्या जगत् को बराबर प्रतीक्षा बनी रहे। यदि हम कर सके तो यह एक अप्रतिम और अविस्मरणीय कार्य होगा। सदर्भ I Linguistic Survey of India, vol 1x, part i G A Grierson ___Summary of important dates, p 11 2 lbid Section 11, pp 16-27 3 Ibid p 18 4 Ibid p 25 Baiju Das, Baba, Bibek Kosh (A Hındı Dictionary in Hindi) Bankipore, 1892 5 Ibid p 17, London 1773 ६ श्रीधरभाषाको५ प० श्रीधर त्रिपाठी नजीराबाद, लखनऊ १८६४ । ७ कोणकला रामचन्द्र वर्मा साहित्यरल-माला कार्यालय, २० धर्मकूप, वाराणसी १६४८ ।
SR No.010482
Book TitleSanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
PublisherKalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
Publication Year1977
Total Pages599
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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