SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 392
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३६४ मस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोण की परम्परा हो, ध्र वा या गीतियाँ हो अपवा दोहे वा गायाएं', उनकी प्राकृत इतनी सरल या सस्कृत मिश्रित रही है, जिसका अर्थ जानने के लिए किसी प्राकृत-शब्दकोश को ले कर बैठने की आवश्यकता नहीं थी। यही कारण है कि प्राकृत मे इने-गिने चारपाँच शब्दकोशो की रचना का ही उल्लेख मिलता है। प्राचीन शब्दकोशो से महाधनपाल कृत कवि "पायलच्छीनाममाला" और आचार्य हेमचन्द्र विरचित "देशीनाममाला" ये दो कोश उपलब्ध है। देशीनाममाला ___ 'देशीनाममाला' भारतीय आर्यभाषाओ के ऐतिहासिक अध्ययन के लिए एक विशिष्ट कोश है । आठ वर्गो मे विभक्त देशी शब्दो का यह एक अपूर्व सकलनात्मक ग्रन्थ है । मूल शब्दकोश प्राकृत मे है, जिसकी सस्कृत व्याख्या स्वय ग्रन्थकार की है। देशी शब्द के सम्बन्ध मे कोशकार यह प्रतिज्ञा कर चला है कि जो शब्द न तो व्याकरण से व्युत्पादित है और न सस्कृत कोशो मे निबद्ध है तथा लक्षणा शक्ति से भी जिनका अर्थ प्रसिद्ध नहीं है, उन शब्दो का सकलन इस कोण मे किया जा रहा है। कहने का आशय यह है कि जो शब्द व्याकरण के अनुसार प्रकृति, प्रत्यय आदि विभाग से सिद्ध नहीं होते और संस्कृत के कोशो मे जिनकी प्रसिद्धि नही है तथा लक्षणा शक्ति से भी जिनका अर्थ वाच्य नहीं है, वे देशी शब्द कहे जाते है । ये देशी शब्द प्रादेशिक भाषाओ मे प्रसिद्ध रहे है, जो सख्या में अनन्त है, इसलिये उन सर्व का सकलन होना सम्भव नही है । ये अनादिकाल से प्रवृत्त तथा प्राकृत भाषा मे विशेष रूप से प्रचलित देशी शब्द है। वास्तव मे देशी शब्द प्रचलित मुद्रा के समान देशी सिक्के है जो समय-समय पर चलन से बाहर होते रहे है । किन्तु कुछ-न-कुछ श०८ वरावर प्रत्येक भाषा मे प्रचलन मे रहे हैं, जिन्हे आज हम देशी शब्द के रूप मे जानते हैं। इस कोश मे कुल शब्दो की संख्या ३९७८ है। सबसे अधिक शब्दो की सख्या ऐसी है जो प्रकृति-प्रत्यय से निष्पन्न नहीं होते अथवा अव्युत्पादित प्राकृत शब्द है । तत्सम शब्दो की संख्या १०० है, गर्भित तद्भव १८५० है, सशय युक्त तद्भवो की संख्या ५२८ है और अव्युत्पादित प्राकृत शब्द १५०० है । वास्तव में प्रो० बनर्जी ने अव्युत्पन्न शब्दों की संख्या कम बताई है, किन्तु है अधिक । आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओ और उनकी बोलियो मे पाये जाने वाले अनेक शब्दो का सीधा सम्वन्ध इन देशी शब्दो मे देखा जा सकता है । ऐसे कुछ शब्त निम्नलिखित है। (१) अक्का भगिनी (देशी० १, ६)। प्राकृत अपभ्रश मे अक्क और अपका द मिलते हैं। इनका अर्थ माता और ज्ये७० भगिनी दोनो है । मोनियर विलिय ने 'पचतन्त्र' मे आगत 'सका' शब्द को कोकणी बताते हुए ज्येष्ठ भगिनी अर्थ किया है। टी० बरो ने इसे द्रविड वर्ग को शब्द माना है। अन्य
SR No.010482
Book TitleSanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
PublisherKalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
Publication Year1977
Total Pages599
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy