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________________ ३६२ सस्कृत-प्राकृत व्याकरण और बोश की परम्परा रचना है। दिगम्बर जैन शास्त्र-भाण्डारो मे इस की कई हस्तलिखित प्रतियां उपलब्ध होती हैं। वर्णादिक्रम से इसमें एक-एक वर्ण का अलग-अलग अर्थ वर्णित किया गया है। श्री जिनदत्तसूरि के शिष्य अमरचन्द्र कृत 'एकाक्षरनाममाला' भी कही जाती है। ५६ श्री राजशेखर के शिष्य सुधाकलश विरचित 'एकाक्षरनाममाला' के सम्बन्ध मे कहा जा चुका है । उक्त कोशकार चौदहवी-पन्द्रहवी शताब्दी के जान पडते अन्य संस्कृतकोश ____ संस्कृत के सुप्रसिद्ध कवि तथा कोशकार महेश्वर सूरि कृत 'विश्वप्रकाश' की वृत्ति वि०स० १६५४ मे खरतरगच्छ के आचार्य भानुकेश के शिष्य जिनविमल ने रची थी, जो महत्वपूर्ण मानी जाती है । इसका प्रकाशन होना अत्यन्त आवश्यक साधुकीति यतिकर के शिष्य साधुसुन्दरमणि ने 'धातु रत्नाकर' नामक बृहत् ग्रन्थ वि० स० १६८० मे रचा था। इस मे संस्कृत की प्राय सभी वातुओ का सग्रह किया गया है और उनके रूपाख्यानो का विशद आलेखन किया गया है।५० डॉ० नेमिचन्द्र जैन शास्त्री के अनुसार उन्होंने 'शब्दरत्नाकर' की रचना की थी। इस कोश मे कुल १०११ श्लोक है। कोश छह काण्डो मे विभक्त है ।५८ सक्षेप मे, डॉ० शास्त्री के शब्दो मे "राजचन्द्र का देश्यनिदेश-निघण्टु और विमलसूरि का देश्यशब्दसमुच्चय भी महत्त्वपूर्ण हैं।" वि०स० १६४० मे विमलसूरि ने 'देशीनाममाला' के शब्दो का सार ले कर अकारादि क्रम से 'देश्यनिदेश-निघण्टु' की रचना की थी। पुण्य रत्नसूरि का 'द्वयक्षरकोश', अमगकवि का 'नानायकोश', रामचन्द्र का 'नानार्यसग्रह', एक हपंकीति की नाममाला की गणना भी उपयोगी कोशो मे की जा सकती है। तपागच्छ के आचार्य सूरचन्द्र के शिष्य भानुचन्द्र ने 'नामसग्रहकोश' की रचना की। हपंकीतिसूर की 'लघुनाममाला' भी भाषा और साहित्य के अध्येताओ के लिए उपयोगी है। इनके अतिरिक्त भी सस्कृत के कुछ अन्य कोश जैन शास्त्र-भाण्डारी मे मिलते है, जिनका विवरण न मिलने से उल्लेख नहीं हो सका है। श्री ज्ञान विमलगणि ने ई० १५९८ मे 'शब्दभेदप्रकाश' की रचना की थी। सम्भवत उपर्युक्त उल्लिखित जिनविमल कृत वृत्ति वाली यह रचना है। क्योकि महेश्वरसूरि कृत विश्वप्रकाश' और 'शब्दभेदप्रकाश दोनो रचनाए एक ही ग्रन्य मे है । अत दोनो को एक समझना चाहिए । ज्ञानविमलगणि के नाम से कोई शब्दभेदप्रकाश' अभी तक हमारे देखने मे नही आया है।
SR No.010482
Book TitleSanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
PublisherKalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
Publication Year1977
Total Pages599
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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