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________________ प्राकृत-अपभ्रंश का राजस्थानी भाषा पर प्रभाव ३०६ અપ૦ નાછી> નાછી महुमास लज्छि ण तरुवरहि (सदेश रासक-३०५) परन्तु वेलि मे लक्ष्मी से लिखमी' बना है। लिखमी समी रुकमणी लाडी (छद-३३) आधुनिक राजस्थानी मे लिखमी' ही मिलता है। पालि और प्राकृत मे लक्ष्मी का लखमी होता है। राजस्थानी मे आदि 'अ' का इ मे परिवर्तन होकर लिखमी' बना है। इसी प्रकार अ५० पुत्तली>पूतली हो गया है किरि कठचीन पूतली निज करि (छद-२) उपर्युक्त परिवर्तनो के अतिरिक्त अन्य ध्वनि परिवर्तनो के कतिपय उदाहरण निम्नलिखित हैं १. कालिदी > कालिद्री (वे कि रु री) २ कर्दम > कादो ( , , ) ३ किंजल्क > किंजलक ( , , ) ४ कीर्तन > कोरतन श>स ५ किशुक > किसुक ( , , ) ६ पलाश > पलास ७ केशव > केसव क्ष>ख ८ क्षणान्तर> खिणतर ६ क्षीण > खीण १०. क्षीर > खीर ११ क्षुधा > खुधा ऋ>इ यह परिवर्तन पालि मे ही हो गया था। ऋ के अ, इ और उ मे परिवर्तन पालि मे इस प्रकार मिलते हैं नृत्य >न तृण>तिन वृद्ध > बुड्ढो प्राकृत अपभ्र श मे यही परपरा रही। बलि मे-कृ०॥> किसन मिलता है।
SR No.010482
Book TitleSanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
PublisherKalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
Publication Year1977
Total Pages599
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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