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________________ २८४ सस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोश की परम्परा चाग છેવળ नदी તૃતીયા હતિદ્ર नर्तक तृतीय पगड प्रकृति ધ્રુવ ध्रुव वउर छ। उमरियम छादुमत्यिय छानस्थिक | चओर चगोर चकोर जड जदि યદ્રિ चाय त्याग छेअण છેવન तइय तदिय जी जाव નીવ दलिअ વનિતા पट्टा ट्रग अ धव धव (पति) तडअ તક્રિય ५३ दिआबर दिवागर दिवाकर फल फलग फलक धुआ वदर वदर [प्रकृत पय पाय सज सजद सयत प्रगत फुल्ल फुल्लग फुल्लक भिउर (विनश्वर) | हम हद हत अपर से दिये गये शब्द-रूपो के भेद से प्राकृत (महाराष्ट्री) और शौरसेनी का अन्तर स्पष्ट दृष्टिगोचर हो जाता है । अब हम आ० कुन्दकुन्द रचित ग्रन्यो से कुछ प्रयोग उद्धत करते है, जिससे कि पाठक दि० शौरसेनी की विशेषता से स्वय परिचित हो जायेंगे। મદુર भिदुर समयसार से प्रयोग 5 પસક્રિય जाणगो भूदत्य आदा વંવિદ્રો थुदा (स्तुता) વિજ્ઞ બાહૂબ अविरदि ३० ५१ ७२ गायांक प्रयोग गायांक प्रयोग गाथांक વિવાદ્ધિની સુપરવિવાબુભૂવા ૪ जाणिदूण १७ अणुचरिदव्या २२ मोहिदमदी २३ इदर २६ નતિ वदिदो २८ थुणदि २६ कदा (कृता) णादूण ३४ एदे હોદ્યાવિહુ ६६ कुणदि ७४ परिणमदि ७८ कुपदि (करोति) ८५ ८८ आदा (आत्मा),६७, अप्पा, अत्ता ६४,६७, १०२ विधाद १०२ णादव १५६ १६० विजाणादि નિષ્ફળાવો १७१ બાળમુખાવો १६६ બાવમિ fમળદુ मुचदि १५०, २८१ વ્યવો નિદ્રિ વિક્લન્દ્રિ १६५ [छिज्ज .
SR No.010482
Book TitleSanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
PublisherKalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
Publication Year1977
Total Pages599
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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