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________________ आचार्य श्री कालू गणी व्यक्तित्व एव कृतित्व ५ गढ या छापर भेजकर वे कालू के उस वैराग्याकुर को सीचते रहे। मुनि-दीक्षा मधवाणी मारवाड और मेवाड की यात्रा कर फिर थली प्रदेश मे आए। लाडणू मे छोगाजी ने उनके दर्शन किए और दीक्षित करने की प्रार्थना की । उस समय आचार्यवर ने उन्हे साधु-प्रतिक्रमण सीखने की स्वीकृति दी। यह साधु-दीक्षा की पूर्व स्वीकृति होती है। म. १६४४ का चतुर्मास वीदासर मे था। छोगाजी ने वहा मधवागणी के दर्शन किए। इस बार उनकी प्रार्थना स्वीकृत हो गई। उन तीनो (छोगाजी, कालू और कानकवरजी) को दीक्षा की आज्ञा प्राप्त हो गई। ___ शोभाचन्दजी वैगानी वीदासर के वरिष्ठ श्रावक थे। धर्मिष्ठ, श्रद्धालु और सौभाग्यशाली। उन्होने कालू से पूछा "तुम दीक्षा ले रहे हो, पर जानते हो कि अपने यहा पारिवारिक जनो की स्वीकृति प्राप्त किए बिना दीक्षा नही हो सकती। क्या तुमने वह स्वीकृति प्राप्त कर ली?" कालू ने कहा "मेरी मा मुझे दीक्षा की अनुमति देगी और उनको मैं दूगा, फिर और किसकी अनुमति लेनी है ? कालू के उत्तर ने शोभाचदजी का मन जीत लिया।' छोगाजी छापर गईं, अपनी जेठानी की अनुमति प्राप्त करने के लिए। जेठानी ने उन्हें अनुमति नहीं दी और कहा कालू को मैं दीक्षित नही होने दूगी । क्या मेरे देवर का घर उजाडना है ? छोगाजी ने सोचा, जेठानी मे अभी मोह का आवेश है। यह मेरी बात नही मानेगी। उन्होने गोविन्दरामजी नाहटा आदि प्रमुख श्रावको के सामने अपनी समस्या रखी और अपनी जेठानी को समझाने का अनुरोध किया। उन लोगो के कहने पर उसने अनमने भाव से दीक्षा की अनूमति दी। दीक्षा के समय शोभा यात्रा निकाली गई। उस समय शोभाचदजी बैगानी ने कालू को बहुमूल्य हार पहनाना चाहा । पर कालू ने यह स्वीकार नहीं किया। वार-बार आग्रह करने पर भी उन्होने यह स्वीकार नही किया । कालू ने कहा "मा, क्या मैं हार के बिना अच्छा नही लगता ? जो घर मे है, वही जब हम छोड़ रहे हैं, फिर दूसरो को हार क्यो पहनना चाहिए ?" कालू की इस बात ने सबके मन मे आश्चर्य पैदा कर दिया। स. १९४४ आश्विन शुक्ला तृतीया को वीदासर मे हजारो मनुष्यो की उपस्थिति मे दीक्षा की विधि सपन्न हुई। दीक्षा देनेवाले थे तेरापथ के पाचवें आचार्य श्री मधवागणी। दीक्षित होनेवाला था तेरापथ का भावी आचार्य मुनि कालू, छोगाजी और कानकवरजी। दीक्षा का स्थान था जीतमलजी दूगड का नोहरा।
SR No.010482
Book TitleSanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
PublisherKalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
Publication Year1977
Total Pages599
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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