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________________ २६६ सस्थात-प्राकृत व्याकरण और कोश की परम्परा होती है। किसी घटना का वर्णन पढकर ऐसा लगता है कि सामने खडा हुआ कोई व्यक्ति स्वाभाविकता, सरलता एव बोधगम्यता के साथ अपनी बात सुना रहा है । हाँ, बीच-बीच मे कया को गभीर रूप देने और उसे रोचक बनाने के लिए वर्णको का समावेश कर लिया जाता है । ये वर्णक प्राय वधे-वधाये रूप मे एक जैसे होते है, जिनका प्रयोग सर्वमान्य रूप में किया जाता है। उदाहरण के लिए जो बात चपा नगरी के वर्णन-प्रसग मे औपपातिक सूत्र मे पणित है, वे ही साकेत के सबंध मे अन्यत्र समझ लेनी चाहिए। बीट सूत्रो मे 'वेपाल' (पातु अल) की भाति यह वर्णन प्राय 'जहा वण्णओ 'शदो से मूचित किया जाता है । आगमसाहित्य मे इस प्रकार के वर्णन राजा, नगर, चैत्य, साधु-सतो का आगमन, पुन-जन्म-उत्सव, प्रीतिदान, निक्रमण-सत्कार आदि के प्रसग उपस्थित होने पर जहां-तहाँ पाये जाते है। इस प्रकार के वर्णन केवल जैन आगम-साहित्य मे ही नही, प्राकृत, संस्कृत एव अपभ्र श के अन्य ग्रन्थो मे भी उपलब्ध होते है। १४वी शताब्दी के मिथिला निवासी ज्योतिरीश्वर के वर्ण रत्नाकर मे राजाओ के भाट, आखेट, रणभूमि के लिये प्रस्थान, दूतियो, देश-देशान्तर की तरूणियो तथा नारियो के आपण आदि के मनोरजक वर्णन मिलते है। डॉ० वी० जे० सडेसरा द्वारा सम्पादित वर्णकसमुन्वय इस प्रकार की दूसरी महत्त्वकी रचना है, जिसमे नगर, हाथी, सर्प, समुद्र आदि के वर्णन उपलब्ध होते है। आगमी के विशिष्ट शब्द યહાં કામ વીર નવી વ્યાયાલો મે સન્નિહિત પ્રાøત તપય વિશિષ્ટ शब्दो का अध्ययन प्रस्तुत किया जा रहा है । आशा है, यह अध्ययन जैन आगमसाहित्य के अनुशीलन मे प्रेरणादायक सिद्ध होगा। १ शैलीगत शब्दावलि • ___ जन आगमो की शैली के संबंध में कहा जा चुका है । भगवतीसून, नायाध+मकहा आदि बागमो मे सर्वमान्य रूप में प्रयुक्त निम्न शब्दावलि आगम-साहित्य की विशिष्ट शैली की ओर सकेत करती है १ कालमासे काल किपा (मृत्यु आने पर काल करके)। ૨ તમેય વિતય જસવંદ્વય નિયમેય પડિછિયમેય ફછિયपडिच्छियमेय सण एसमठ्ठ ‘ज तुम्भे यह (यह वात तयारूप है, अवितथ है, असदिग्ध है, ३८८ है, विशिष्ट है, इष्ट-विशिष्ट है और सत्य है, जो आपने कही
SR No.010482
Book TitleSanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
PublisherKalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
Publication Year1977
Total Pages599
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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