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________________ २३० . संस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोग की परम्परा हो। साथ ही यह भी कहा जाता है कि वह प्राकृत जो आप शास्त्रो मे पाई जाती है अर्थात् अर्द्धमागध वह भाषा है, जिसे देवता बोलते हैं 'आरिसक्यणे सिद्ध देवाण अदमागही वाणी' । इस लेखक के अनुसार प्राकृत वह भाषा है जिसे स्त्रियाँ, बच्चे आदि विना कष्ट के समझ लेते हैं, इसलिए मध्यभाषा सब भापाओ को जड है। बरसाती पानी की तरह प्रारम्भ मे इसका एक ही रूप या, किन्तु नाना देशो मे और नाना जातियो मे वाली जाने के कारण (उनके व्याकरण के नियमो में भिन्नता आ जाने के कारण) तथा नियमो मे समय-समय पर सुधार चलते रहने से भाषा के रूप मे भिन्नता आ गई। इसका फल यह हुआ कि सस्कृत और अन्य भापाजो के अपभ्र श रूप बन गये, जो 'रुद्रट' ने २ १२ मे गिनाये हैं। यहाँ यह वात ध्यान देने योग्य है कि 'नमिसाधु' के मतानुसार संस्कृत की आधारभूत भा५। अथवा कहिए कि संस्कृत की व्युत्पत्ति प्राकृत से है । यह बात इस तरह स्पष्ट हो जाती है कि वोडो ने जिस प्रकार मागधी को सव भापाओ के मूल मे माना है, વસી પ્રકાર નૈનો ને ર્ધિમાગધી કો સચવા તૈયાર છો દારા વખત માર્ષમાવા જો यह मूल भाषा माना है जिससे अन्य वोलिया और भाषाए निकली हैं ।"२६ अर्धमागधी मे मागधी और शौरसेनी का सम्मिश्रण माना है । डा० पिशल के अनुसार मार्प और मागधी भाषा एक ही है। किन्तु निशीथ चूणिकार के अनुसार अर्धमागधी मे केवल शौरसेनी को ही नही किन्तु अतारह देशी भाषागत विशेषताए उपलब्ध हैं । इसलिए जिसे उत्तरवती वैयाकरणो ने आप कहा है, वह व्याकरण के नियमो से सर्वथा अनियतित भी नहीं है और लौकिक सस्कृत की भांति बहुत नियनित भी नहीं है । आप-प्रयोग प्राचीन व्याकरण से नियनित है । उन नियमो की जानकारी वैदिक व्याकरण के नियमो के संदर्भ मे की जा सकती है। ____ अनुयोगहार के चूणिकार ने श०५-प्रामृत या पूर्व शास्त्रों के अन्तर्गत व्याकरणो का निर्देश किया है। इससे ज्ञात होता है कि आगमसूनो की रचना के समय जो व्याकरण थे, उनके आधार पर आगमसूतो के प्रयोग किए गए। भाषा का प्रवाह और उसके प्रयोग काल-परिवर्तन के साथ-साय परिवतित होते रहते है। पन्द्रह सौ वर्ष वाद बनने वाले व्याकरणो मे उन पूर्ववर्ती व्याकरणों के नियमो का अनुवर्तन सभव नहीं होता। इसीलिए प्राचीन प्रयोगो को 'आर्ष' कहने की मनोवृत्ति निर्मित हुई। आगमसूतो मे प्राचीन व्याकरणो के कुछेक सकेत सौभाग्य से आज भी उपलब्ध है। उनके आधार पर हम अलक्षिणिक प्रयोगो को कसोटी पर कस सकते हैं। स्थानाग सूत्र मे शुद्धवचन अनुयोग के इस प्रकार बतलाए हैं। . १ पकार अनुयोग चकार शब्द के अनेक अर्थ हैं । (क) समाहार सहति, एक ही तरह हो जाना।'
SR No.010482
Book TitleSanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
PublisherKalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
Publication Year1977
Total Pages599
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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