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________________ भिक्षुादानुशासन एक परिशीलन : १६१ ७२. प्राग् देशे ६।२।१३ पाणिनीय मे इन दो सूत्रो के स्थान पर एक ही सूत्र है एड, प्राचा देशे ११११७५ ७३ अनिदम्यणपवादे च दित्यदित्यादित्ययमपत्युत्तरपदाय. ६।२।१६ इदम् अर्थ को वर्ज कर अपत्यादि अर्थ मे प्रत्यय करता है। पाणिनीय मे अनिद शब्द नहीं है। ७४. २च विश्रवसो विश लोपश्च वा ६।२६५० विश्रवसोऽपत्यं वैश्रवण., विश् लोपे तु रावणः । पाणिनीय मे ये रूप नही बनते। ७५ अग्निशमगोवृपाणे ६।२१७० आग्निशर्मायणो वृप गण । पाणिनीय मे यह सून नही है। ७६. कृष्णरणाद् ब्राह्मणवाशिष्ठे ६१२१७१ काष्णयिनो ब्राह्मणः राणायनो वाशिष्ठ । पाणिनीय मे यह सूत्र नही है। ७७ दशु कोशल कर्मारच्छाग वृपेभ्यो युट् च ६।२८२ दागव्यायनि । पाणिनीय मे दगु शब्द नहीं है, इसलिए दागव्यायनि रूप नहीं बनता। ७८ दुष्टे गोधाया एरण च ६।२।१०३ गोवा शब्द से दुष्ट अपत्य अर्थ मे एरण् प्रत्यय होता है। गोधरे । पाणिनीय मे दुष्ट शब्द नही है। ७९ उदितगुरोरन्दे ६॥३॥६ पुष्पेण उदित गुरुणा युक्त वर्षे पोष वर्षम् । पाणिनीय मे यह सूत्र नहीं है। ८० धेनोरनन. ६।३.१६ वेनु शब्द से समूह अर्थ मे इकण् प्रत्यय होता है, यदि वह नन समास न हो तो। धनुकम्। पाणिनीय मे अनब २००८ नही है। ८१ पुरुषात् कृत हितवधविकारम्समूहे वेयन ६।३।६४ पुरुषेण कृत पौरुषेयो ग्रन्थ , पौरुषेयमार्हत शासनम् । पाणिनीय मे यह सूत्र नहीं है। ८२ र को प्राणिनि वा ६।४।१२ रड्कु शब्द से प्राणि अर्थ मे पायनण् प्रत्यय विकल्प से होता है। राड कवायण । मनुष्य अर्थ मे राड कवको मनुष्य । पाणिनीय मे कोरमनुष्ये णच् यह सूत्र है।
SR No.010482
Book TitleSanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
PublisherKalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
Publication Year1977
Total Pages599
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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