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________________ सस्कृत व्याकरणो पर जैनाचार्यों की टीकाए एक अध्ययन · १२६ १७ सारस्वतटीका श्रीचतुरविजय जी के "जनेत र साहित्य और जैन" लेख के अनुसार यतीश विद्वान् ने एक टीका लिखी थी। सम्भवत ग्रन्थकार का नाम सहजकीति हो सकता १८ सारस्वतटीका तपागच्छीय उपाध्याय भानुचन्द्र के शिष्य देवचन्द्र ने एक श्लोकवद्ध टीका की रचना की थी। इसकी हस्तलिखित प्रति बीकानेर मे श्री अगरचन्द नाहटा के भग्रह में प्राप्त है। १९ सारस्वतटीका इसे मुनि धनसागर की कृति कहा जाता है । धनसागरप्रणीत होने से यह टीका 'धनसागरी' नाम से भी अभिहित की जाती है। इसका उल्लेख जनसाहित्य के सक्षिप्त इतिहास में किया गया है। २० सारस्वत (क्रिया) रूपमाला पभसुन्दरमणि ने इसमे धातुरूप दिखाए हैं । ग्रन्थारम्भ मे कहा गया है सारस्वतक्रियारूपमाला श्रीपमसुन्दरै । सदृधाऽलकरोत्वेषा सुधिया करुदली ।। वि० स० १७४० मे लिखी गई ५ पनो की प्रति लालभाई दलपतभाई भारतीय सस्कृति विद्यामन्दिर, अहमदाबाद मे प्राप्त है। २१ सारस्वतमण्डनम् श्रीमालज्ञातीय मन्त्री मण्डन ने १५वी शताब्दी मे इसकी रचना की थी। २२ सारस्वतवृत्ति क्षेमेन्द्र रचित सारस्वत-टिप्पण पर तपागच्छीय उपाध्याय भानुचन्द्र ने १७वी शताब्दी मे एक वृत्ति रची थी। हस्तलेख की प्रतिया पाटन तथा छाणी के शानभण्डारी मे प्राप्त है। २३ सारस्वतवृत्ति खरतरगच्छीय मुनि सहजकीति ने वि० स० १६८१ मे इसकी रचना की थी। इसकी हस्तलिखित एक प्रति बीकानेर के श्रीपूजा जी के भण्डार मे तथा दूसरी
SR No.010482
Book TitleSanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
PublisherKalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
Publication Year1977
Total Pages599
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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