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________________ आचार्य हेमचन्द्र और पाणिनि स्व० डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री सस्कृत व्याकरण की रचना बहुत प्राचीनकाल से होती आई है। सस्कृत के प्रकाण्ड वैयाकरण महर्षि पाणिनि के पूर्व भी कई प्रभावशाली वैयाकरण हो चुके थे, किन्तु पाणिनि के व्याकरण की पूर्णता एव प्रभावशालिता के कारण सूर्य के सामने नक्षत्रो की भाति उनकी प्रभा विलीन हो गई और व्याकरण जगत् मे पाणिनीय प्रकाश व्याप्त हो गया। इतना ही नहीं अपितु इस भास्वर प्रकाश के सामने बाद मे भी कोई प्रतिभा उद्भासित नहीं हो सकी। विक्रम की बारहवी शताब्दी मे एक हैमी प्रतिभा ही इसके अपवाद रूप मे जागरित हुई । यह प्रतिभा केवल प्रकाश ही लेकर नही आई अपितु उस प्रकाश मे रसमयी शीतलता का सहयोग भी था । हेम ने शब्दानुशासन के साथ शब्दप्रयोगात्मक द्वयाश्रय काव्य की भी रचना की। आचार्य हेमचन्द्र ने अपने शब्दानुशासन को पाणिनीय शब्दानुशासन की अपेक्षा सरल बनाने की सफल चेष्टा की है, साथ ही पाणिनीय अनुशासन से अवशिष्ट शब्दो की सिद्ध भी बतलाई है। सक्षेप मे यह कह सकते हैं कि शब्दानुशासन-प्रक्रिया मे पाणिनीय वैयाकरणो के समस्त मस्तिष्को से जो काम पूरा हुआ है, उसे अकेले हेम ने कर दिखाया है। सच कहा जाए तो इस दृष्टि से सस्कृत भाषा का कोई भी वैयाकरण चाहे वह पाणिनि ही क्यो न हो, हेम की बराबरी नही कर सकता। हमे ऐसा लगता है कि हेम ने अपने समय मे उपलब्ध कातन्त्र, पाणिनीय, सरस्वती कण्ठाभरण, जैनेन्द्र, शाकटायन आदि समस्त व्याकरण ग्रथो का आलोडन कर सारग्रहण किया है और उसे अपनी अद्भुत प्रतिभा के द्वारा विस्तृत और चमत्कृत किया है। प्रस्तुत निवन्ध मे शब्दानुशासन की समस्त प्रक्रियाओ को ध्यान में रखते हुए हेम की पाणिनि के साथ तुलना की जाएगी और यह बतलाने का आयास रहेगा कि हेम मे पाणिनि की अपेक्षा कौन सी विशेषता और मौलिकता है तथा शब्दानुशासन की दृष्टि से हेम का विधान कैमा और कितना मौलिक एवं उपयोगी है। सर्वप्रथम पाणिनि और हेम के मज्ञाप्रकरण पर विचार किया जाएगा और
SR No.010482
Book TitleSanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
PublisherKalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
Publication Year1977
Total Pages599
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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