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________________ विज्ञप्ति। अनेक धर्मात्मा भाई स्नान पूजादि करके मंदिरजीमें जाकर भकामर आदि स्तोत्रोंका पाठ भावपूर्वक किया करते हैं। पाठ करनेकी पुस्तक हस्त लिखितकी प्राप्ति न होनेसे अन्य जगहकी मांसके (सरेसके ) वेलनसे छपी, सरेससे ही जिल्द बंधो हुई पुस्तक परसेही (जिसके छूनेसे तन मन दोनों ही अपवित्र होजाते हैं) किया करते हैं इसकारण इस संस्थाने संस्कृत और भाषा दोनों प्रकारके गुटके। अपने पवित्र प्रेसमें कपडेके वेलनसे छपाकर तैयार किये हैं। पाठ भी नित्य काममें |आनेवाले बहुत शुद्ध करके छापे हैं। अतपत्र सब भाइयोंको इस पवित्र गुटके परसे। ही नित्य पाठ करना चाहिये। भाद्रपद कृष्णा तृतीया ) . __ आपका हितपीवीर सं० २०५५। 3 पन्नालाल बाकलीवाल सुजानगढ़ निवासी
SR No.010481
Book TitleSanskrit Jain Nitya Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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