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________________ विजयनगर साम्राज्यका इतिहास। (५५ विजयनगर साम्राज्यकी स्थापनासे १७ वर्षों बाद ही सन् १३६३ 10 में बैनधर्म विषयक एक धार्मिक विवाद उठ खड़ा हुमाया। इस विवादका निपटारा जिस निष्पक्षमावसे किया गया, उससे यह छिपा नहीं रहा कि विजयनगर साम्राज्यके अन्तर्गत जैनियोंके मषिकार सुरक्षित है-विजयनगर सम्राट का राजधर्म भले ही वैदिक मता हा, परन्तु उनके द्वारा जैनधर्म में हस्तक्षेप होनेका कोई भय नहीं था। हरिहरराय प्रथमका पुत्र विरुवाका मोडेपर मलेराज्य प्रान्त र महामा. मेश्वर रूपमें शासन कर माथा : यह विवाद उसी के सम्मुख उपस्थितः हुमा। विवाद हेदरनाडके अन्तर्गत तड्हाड नामक स्थानके प्राचीन बैन मंदिर पार्श्वनाथ बस्ति' की नमीनसे सम्बन्ध रखता था । हेरानाटकी बदिकमतावलम्बी जनता उस जमीन पर अपना अधिकार बसा रही थी। गजाने इस मामलेको नौच करने की माशा दी और मलेराज्यको राजधानी सारंगकी चावड़ी (कोकागार ) में मामलेकी बांच पड़ताल की गई। इसमें दोनों पक्षके प्रमुख पुरुष नुहाये गये थे। मल्लप मादि जैन नेताओंने उपस्थित होकर अपने दावाको प्रमा. जित किया। मन्तमें सर्वसाधारण जनताकी सम्मनिसे प्राचीन प्रषाके अनुसार ही मंदिरकी नमीनकी सीमायें निश्चित कर दी गई गोर उसकी पौर मायदाद भी सुरक्षित बना दी गई। सर्व सम्मतिसे वह निर्णय पत्थर पर खुदवा दिया गया।' वैष्णवों और बैनोंमें सन्धि। उपर्युत पटनाके केवळ पाच वर्ष बाद ही बुराव प्रथमके १-का., माग ८१.२०५-२०००, १० २८०-२८८..
SR No.010479
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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