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________________ ४५] संधित जैन इतिहास । हरिहरको मृत्युके पश्चात् रामसिंहासनपर बैठे थे। वैसे बह बलाक तृतीयके समयसे ही राज्यके दक्षिणी भागका शासन प्रबंध करते थे। हरिहरको मृत्यु के साथ ही तेलुगू पांतमें विद्रोह प्रारम्भ होगया था, किन्तु प्रतापी बुकने इन विद्रोहियोंको शीघ्र ही परास्त कर दिया था। बुक्के युद्ध-कौशक और तरूवारकी चमचमाइटसे शत्रुभोंके दिक पास जाते थे । बुक्ने मान्ध्र, मा और कलिङ्ग पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया था। परंतु बुकका अधिक समय बहमनी राज्यके प्रसिद्ध शासक मुहम्मदशाह (सन् १३५८-१३७७ ई०) से युद्ध करनेमें बीता था। पहले बुकने मुसलमानोंको पास्त करके उनके कई किलोपर मषिकार बना लिया था, किन्तु बादमें दौलताबाद के नपापकी सहायता पाकर मुसलमान कामयाब होगये थे। सतहबार हिन्द इस युद्धमें मारे गये थे।बुकको यह युद्ध मुसलमानों के अत्याचारोंके कारण सोहना पड़ा था। माखिर दोनों शासकोंमें संधि होगई थी। उन्होंने महाराजाधिरानकी पदवी धारण करके अपने नामके सिकभी चलाये थे।' जैनोंका संरक्षण। राज्य शान्ति स्थापित हो जानेर बुकरायने हिन्दूधर्मको उमत बनाने के प्रयास किये। मरीमठमें जाकर उन्होंने अपने गुरु माषषाचार्यकी बन्दना की और कई गांव मेंट किये। वेदोंके टीकाकार सायणाचार्यको भी उन्होंने प्रश्रय दिया। और शासन व्यवस्था उनके देखरेख में भागे पढ़ाई। किन्तु वैदिक महानुपायी होते हुए भी देवरायने धेनोंको अपना धर्म पालन करनेका अवसर दिया था। -०, ११-४१. २-०, - -
SR No.010479
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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