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________________ २४] संक्षिप्त बनाइविधाम । मस्तुशांचा खंड है। इस खंड में होस साम्राज्य के मकाके उपरान्त ठिापित विजयनगर साम्राज्य मन्तर्गत चैनधर्मके इतिहासको संकलित करना अभीष्ट है। पांचवा खंड। . होरल साम्राज्यकी म्याप जैनाचार्य द्वाग जैनोत्कर्षके लिये हुई थी और उस काल में जनोंका उत्कर्ष भी विशेष हुआ था। किंतु भी गमानुन द्वारा वैष्णवधर्मके प्रवास और होमनरेश विष्णुर्दके धर्मप्रवर्तन जैनोत्कर्षका सूर्य अस्ताचरको खिसक चला था। उस अबसान काल में भी जैन गजकर्मचारियों, व्यापारियों और साधारण जनता द्वारा जैनका प्रभाव स्थिर रखनका सद्प्रयास हुआ था। किन्तु उसीसमय दक्षिण भातपर मुपलमानों के नाक्रमण हुए । जिनके कारण होरमा साम्राज्य ही बर्जरित हो गया। जैनधमकी पति विषम स्थिति हो गई-जैनोंकी भाशायें विलीन हो गई; पान्तु यह परामत नहीं हुवे । माता जैनकी र.ज्यमान्यता नष्ट हो गई और उसका स्थान वैष्णवर्मने ले लिया, फिर भी जैनधर्मको बड़े उस प्रदेशमें गारी जमी हुई थी, इसलिये उसे न तो वैष्णधर्म निकाल सका और नहीं ही मुसलमानों के माक्रमण ! होम्सक नरेश बाला चतुर्षके पामपने उसके सादारों को साधीन होने का मौका दिया । उपर जनताने हनुम किया कि देवकी बाके लिये एक बयान शासककी नावश्यकता है। होमक परेशाने सजिमालीगी। साथ ही कोई प्रभावसालापर्व
SR No.010479
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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