SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संक्षिस जैन इतिहाम। इसी कारण यह ब्रह्मा मानि भी कहते थे। इन्द्रनं उनके लिये नयोध्याको बहुत ही सुन्दर बसाया था। ऋषभदेवने ही मातवर्ष में गन्य व्यवस्था स्थापित की थी और इस क्षेत्रको विभिन्न देशों में बाट दिया, जिनपर ऋषभदेवके पुत्र और पौत्र एवं अन्य सम्बन्धी राज शासन काते थे। ऋषभदेवने ही इस कार के मादिमें धर्मतीर्थकी स्थापना की थी। यह दिममा भवमें भाoयवासी साधु ह. गये थे। देखादेखो वह नो मधु हो गये. पान्नु त्यागमई जीवनकी साधनामें बहसमफल रहे। ऋषभदेव तो छ महीनेका योग मादकर बैठ गये। भव-प्पाम, म-गर्मीको उनकी पाबाह नहीं थी। पा उनके साक साधुगण मुम्ब प्यार और मदर्दी माँको बादाश्त न कर सके । उनसे कुछने काहे पहन लिये, कुछने वृक्षवाकलस तन ढक लिया और कुछ नंग ही है और वे सावनफलों और करमूलांस अपनी उदापनि करने हंगे। ऋषभदेवका पौत्र और सम्राट् भातका पुत्र मराचि उनका गुमा बना और उसने रे? दर्शन शस्त्रको स्थापना की जिसका मादृश्य सांरूपसे था। ऋषमदवन साधना और योगनिष्ठाको परिपूर्णताका फावल्य विभूतिमें पाया । कायोमर्ग मुद्रामें ध्यानकीन हकर उन्होंने भामस्वरूप बातक कर्म वर्गणाओं का नाश किया और सज्ञ सदी जीवन्मुक्त पामामाका फमपद प्राप्त किया ।बह बाताबका हुये, क्योंकि उन्होंने ही पहले पहले वर्मतीर्थकी स्वाना की ऋषभदेर जिनेन्द्र ' हे गये थे, इसलिये उनका मतं *"कासबारह दिगमर' थे, इसलिये महंस जोक
SR No.010479
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy