SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 169
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संविस जैन इतिहास | और अपने २ मंदिर भी बग २ बना बैठे। यहां तक कि आपक होते हुये भी एक दूसरे के यहां भोजन नहीं करते थे। वे अनेक छोटी छोटी उपजातियोंमें बंट गये। उनके अपने न्यारे न्यारे गुरु थे। ऐसे जो अपनेको दूसरे बड़ा मानते थे, अन्तरंग की इस दुरवस्थानेनको संघ भावनासे विमुख का दिया और भागे चलकर जैन संघ अमाव हो गया, उधर जैनपर बाहरसे भो माक्रमण हुये । जैनोंकी रंग करूने उनकी विद्या और कलाको भी हीन बना दियाउपर वैष्णाय और शैवोको अवसर मिला। उनमें रामानुज, माधवाचार्य प्रभावशाली गुरु हुये जिन्होंने जैनोंके विरुद्ध नान्दोलन मचा दिया। अनेक जैन कोल्हू में पेल दिये गये। भाव भी दक्षिण के हिन्दुओंमें एक त्यौहार इस घटना को जीवित बनाये रखने के लिये मनाया जाता है । लोक जैन, वैष्णव और लिंगायत होगये एवं कई जैन मंदिर शैव मंदिर अथवा मस्जिद बना लिये गये । इस विषम स्थितिमें चरनेको ओवित रखनेके लिये जैनोंने अपने पड़ोसी वैष्णवादि हिन्दुओं की रीति नीतिको अपना किया। मां पहले चैनधर्मका प्रभाव वैष्णवों पर पड़ा था, वहाँ अब वर्णाश्रमी हिन्दू कर्म जैनों को अपने रंग में रंग लिया | इतिहास अपनेको दुहराता बो है। जैन अपनेको अंगून और शक्तिशाली बनाये रखने में ऐसे ही कारणोंसे नसफल हुये थे । इतिशम् । : 1 1 अकोगंज (एटा), बीरनिर्वाण दिवस २१-१०-१९४९. - कामताप्रसाद जैन ।
SR No.010479
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy