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________________ बन धर्मके पसन के कारण। . १५९ जाने के कारण एवं मार न मंदिरों का सम्पत्ति संक्तिों जाने के कारण कम हो गई थी। सपा पाश्रमी हिंदूधर्मकी प्रधानताका प्रभाव भी उनपर पहा । मध्यकालमें बहुतसे ब्रमण भार अन्य हिन्द नपर्म दीक्षित कर लिये गये थे-मेन हो बानयर भी वे अपने वैदिक संस्कारोंको भुका न सके । जैनों में भी बाति-मर पोषक र नापनका भाव कोगों में पाका गया। यstan fe जैन ब्रमा जानेको श्रेष्ठ मानते और जिनन्द्र के अभिषेक और qrका षिकार उन्होंने माने नाधीन का foया। बम पुरोहितोंकी नान या पुरोहित ईका दम भान रगे। दिगम्बर नागोंक: पान भट्टाकोन ले लिया। उनमें मो - नीवका दुर्भाव बागृत होगया । वह संभवत: भिन२ जातियों के गुरु होनेका कारण बा। यह ऊंच नीरका दुर्भाव मध्ययुगमें करप, बन पंचम, बतुर्थ, बंट नादि मातियों के लोगोंको अमधर्म में दीक्षित लेने के कारण मस्तित्व माया था । उदाहरणत: बंट, पंचम नादि को हिंदुओं में मात्र मी शद्र माने जाते है किंतु जैनों में उनका सामाजिक पद है। बमबान नै मानेको श्रेष्ट मानते थे . उनके गुरु भट्टाक भी बंट में तिगुरुगोस अपनेको र मानते थे। नमक कमान मा. • नमाना शासनक मखा था। अनूठे रीति-रिवान चालक पखे जिनके का जैन न केवल छिन मिन ही हु क जैनधर्म के मुझको भी पिल्लाबेठे। अपने पड़ोमी हिन्नुमोकी नाही मी संबके लियेन महारको गौर सापायोंकी मान्यता
SR No.010479
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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