SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 160
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तत्कालीन साहित्य और ला। Em हे म पाटकोके परिज्ञाग उन बोके बोल परिचय कराते है, नो कम्मकी दृष्टिसे महत्वपूर्ण हैं: (१) विजयनगर वा हम्पीके शापशेष ९मारने केले हुये है, मो उसके गत वैभवकी साक्षी रहे है। मी. नुमति शाखीने उनको देखकर लिखा है कि "एक साधारण विचाशीदर्शक मी इन ध्वंशावशेषों को देखकर इसके गत भको मासानीसे पास लेगा। हम्पीके प्राचीन स्मारकों में यहां के जैन मंद. ही सर्व प्राचीन हैं। नहार ये मंदिर है. वह स्थान इतना सुंदर कि इसे नगरकी नाक कहा जाय तो भी अन्युक्ति नहीं होगी। घरों पर भी हास हटनेकी इच्छा ही नहीं होती। हरिके शिकामय या भय मन्दिर BMI एवं.विक्षा एक चट्टानके ऊपर एक ही पति सुबर देगसे निर्मित है।' इनसे कुछ जैन मंदिर विजयनगास भी पाचन, परन्तु कई मंदिर विजयनगरके शासनकालके है भोर वर्शनीय हैं । एकसि तो स्पट देवगय द्वितीयन ही विजयनगाके पान सुगरी गमा बनवाया था। यह मंदिर मणियोस कृत नबनामिरामा । कम्पतिको बानेवाली मह मिति नामक मंदिर भानी विशालताके लिये प्रसिद्ध था। इसे जैन सेनापति रुगनं सन् १३८५ में बनवाया था और किसी मा हिमने इस नीर्णोद्धा कराया था। इस मंदिग्के मागेकी दीपाश्रम वनीया पगती मंदिरके नीचे उतर जैन मंदिरों का सबसे सही उसके शिलिए देखा पोकाबाट १-३ -८. Primamate
SR No.010479
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy