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________________ ~ मनुष्य में विवेक, उत्साह और शोर्यको जागृत कर उसे विजयी वीर बनाता है, इसीलिये उसकी आवश्यक्ता है। जैन धर्मका इतिहास उसके अनुयायियोंकी जीवन गाथा क्योंकि धर्म स्वयं पङ्गु है-वह धर्मात्मानोंके आभव है। इस बातको लक्ष्य करके पहले मैन इतिहासके तीन संड लिखे जा चुके हैं। उनके पाठसे पाठकगण जान गये हैं कि धर्मका प्रतिपादन इस काम में सर्व प्रथम कर्मयुगके भारम्भमें भगवान ऋषभदेव द्वारा हुमा वा। भगवान ऋषभदेवके पहले यहां मोगभूमि थी। यहांके प्राणियोंको जीवन निर्वाहके लिये किसी प्रकारका परिश्रम नहीं करना होता था। उनका जीवन इतना सरल था कि वह प्राकृतरूपमें ही अपनी मावश्यक्तामोंकी पूर्ति कर लेते थे। जैन शास्त्र कहने है कि 'कल्प. वृक्षों' से उन लोगोंको मनचाहे पदार्थ मिल जाते थे। वह मनमाने भोग भोगते और जीवनका मजा बटते थे। किन्तु जमाना हमेशा एकसा नहीं रहता। वह दिन बीत गये जब यहां ही स्वर्ग था। लोग उतने पुण्यशाली मन्मे ही नहीं किसर्ग-सुखके अधिकारी इस नरवाममें ही होते । बेन सास बताते हैं कि जब एक रोज कल्पवृक्ष नर हो चले, लोगोंको पेटका सवाल हल करनेके लिये बुद्धि और बलका उपयोग करना भावश्यक होगया, परन्तु वे जानने तो थे ही नहीं कि उनका उपयोग कैसे करें? वे अपने मेधावी पुरु. पोंको खोजने लगे, उनोंने उनको कुलकर या मनु कहा । इन कुलकरोंने, जो एक चौदह थे, गेगोंको जीवन निर्वाह
SR No.010475
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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