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________________ महाराजा करकण्ड। । ९. बनवा कर वह मुंर जिनमर्ति स्थापित कराई थी। कोई विद्याधर उस मूर्तिको वहाँ उठा लाये और में उसका उताग । फिर वह उम मुनिको वहाँमे नहीं ले जम करकंडु यह सब कुछ सुनकर बहुन प्रसन्न हुयं । ककंदन वहां दो गुफायें मौबनवाई। ग करकंद मिदापन और वहाँ राजपुत्री का पाणिग्रहण किया। न एक विद्याधर पुत्रीको व्याह कर उन्होंने नील ना और "छ। गांकी मम्मिलित मनाका मुकाबला किया भोगका अ, प्रण पग किया । किन्तु जब कहने उन्हें, जनधनुयाय जाना उन मुस्टीमें जिनप्रतिमाय देखी तो उन्हें बहन, 'श्व ताप हा और हम उन्हें पुनः गज्य देना चाद: पायाभर न दवडाभियान यह कहकर नाम्याको चनकिकदम में पौत्रादि: 4 मेवा कग्ग । वडाम लौटकर न हाने ये का नया भाये और. गज्यसुम्व भागने लगे। ___एक दिन च मामें शगुम मानक मनि का शुभागमन हुमा । कई माग्वार उनको पदनाको । मुनिगजमे उनोंने बोनश और अपने पूर्वभव मुने. जिनके मन में उनमें वैराग्य होगया और वे अपने पुत्र वनावको गज्य बैंकर मुनि हो गये। मुनि अवध में उनोंने घोर तप तप और मास प्राप्त किया। उनकी सानियाँ भी साध्वी होगई थीं। बाराबारबुडी माई हुई ना गाव भावार राजके उस्मानाबाद मिले तेर नामक स्थानपर मिनीtam.
SR No.010475
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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