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________________ ९०] संमित जैन इतिहास । गजाने उनके पास दुन भेजा, पान्नु उन्होंने करकंडका माधिपत्य स्वीकार नहीं किया। इस उत्तरको मुनकर करकंड चिढ़ गया । मौर उमने उनपर तुरन्त चढ़ाई कर दी। मार्गमें वह तेगपुर नगर पहुंचे। गौर वहांके गजा शिवने उनका सम्मान किया। वहीं निकटमें एक पहाड़ी और गुफायें थीं। करकंड शिवगजाके साथ उन्हें देखने गया । गुफामें उन्होंने भगवान पार्श्वनाथका दर्शन किया । वहीं एक वाम को उन्होंने बुदवाया और उससे जो भगवान पार्थनाथकी ॥ मूर्ति निकली. उसको उन्होंने उस गुफा विराजमान किया । मनि निम सिंहासन पर विराजमान थी उनके बीचमें एक भद्दी गाँट दिखनी थी। करने उसे तुड़वा दिया, किन्तु उसके तुड़वाने ही वहाँ भयंकर जलप्रवाह निकल पड़ा। करकंड यह देखकर पछताने लगे। उस समय एक विद्याधरने माकर उनकी सहायता की और उसने उम गुफाके बनने का इतिहास भी उनको बताया। विद्याधरके कथनसे करडको मलम हुआ कि दक्षिण विजबाईक चनपुर नगरसे गजच्युत होकर नील महानीक नाम के दो माई तेरपुरमें भारहे थे। यह दोनों विद्याधर वंशक राजा थे। धीरे धीरे उनोंने वहाँ राज्य स्थापित कर लिया। एक मुनिके उपदेशसे उन्होंने जैन धर्म प्राण कर लिया और वह गुफा मंदिर मा मुख परिये एक र्ति ठेठ दक्षिणमातसे बाई रातो सोने मामले पुदी तर faite
SR No.010475
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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