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________________ सम्राट् खारवेल। [३५ राज्यसिहासनपर आरूढ होनेके पहले वर्षमें खारवेलने अपनी राजधानीकी मरम्मत कराई थी; जिसके परखारवेल राज्यका कोटा, दरवाजे और इमारते तूफानसे बरवाद प्रथम वर्ष । होगये थे । इसके साथ ही उन्होने खिबिर ऋषिके बड़े तालावका पक्का वाध वन्धवाया था। जिसमे कि प्रजाको पानीकी तकलीफ न रहे और मिचाईका काम भी बखूबी चल निकले । खारवेलने इसी समय कई राजोद्यान भी लगवाये थे, और अपनी पैतीस लाख प्रजाकी मनस्तुष्टि की थी व विविध उपायों द्वारा उसको प्रसन्न किया था। साराशतः राज्यसिहासनपर बैठने ही उन्होंने अपने कार्योंमे यह विश्वास दिला दिया कि वह एक प्रजा-हितैषी राजा है। इस प्रकार अपने राज्यके प्रथम वर्षमे राजधानीका पुनरुद्धार __ और प्रजाको प्रसन्न करके खारवेलको अपना खारवेलकी प्रथम साम्राज्य दूर देशोंतक फैलानेकी सुध आई। दिग्विजय। यह भी किसी लालचसे नहीं, बल्कि धार्मिक ___ भावमे । वह अपने लेखमें स्वयं कहते है कि उनकी देशविजयके साथ२ धार्मिक कार्य होने थे। उनका सबसे पहला आक्रमण पश्चिमीय भारतपर हुआ। उस समय वहापर आन्ध्र अथवा सातवाहनवंगीय जातकर्णि प्रथमका गासनाधिकार था। उसका प्रभाव ओड़ीसाकी पश्चिमीय सीमातक व्याप्त था और दक्षिणमे भी उसका अधिकार था ! खारवेलने उसके इस प्रतापकी जरा भी परवा नहीं की। संभवतः सन् १८२ अथवा १७१ ई० पृ० के लगभग उनने काश्यप क्षत्रियों की सहायताके लिये शातकर्णिपर आक्रमण कर
SR No.010472
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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