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________________ ___३४] संक्षिप्त जैन इतिहास । अतएव महामहोपाध्याय श्री कागीप्रसादजी जायसवालके शब्दोंमे यह स्पष्ट है कि कलिंगके सम्राट युवराज खारवेलका 'खारवेलके पूर्व पुरुषका नाम महामेववाहन राज्याभिषेक! और वशका नाम ऐल चदिवंश था।' मालम होता है कि खारवेलके पिताका स्वर्गवास उस समय होगया था जब वह लगभग सोलह वर्षके थे। प्राचीनकालमें सोलह वर्षकी अवस्थामे पुम्प बालिग हुआ समझा जाता था। खारवेल जब सोलह वर्षकी अवस्थामे वालिग होगये नो वह युवराज पदपर आसीन होकर राज्यगासन करने लगे थे । उस समयतक उनका राज्याभिषेक नहीं हुआ था। प्राचीन काल्में राज्याभिषेक २५ वर्षकी अवस्थामे होता था। अत जब पच्चीस वर्ष के हुये तो उनका महाराज्य अभिषेक हुआ था और वह 'एक राजाकी तरह राज्यशासन करने लगे थे। जिस समय खारवेल राज्यसिंहासनपर आरूढ हुये उस समय उनका राज्य कलिङ्गभरमें विस्तृत था, जो वर्तमानका ओडीसा प्रात जितना था। तब कलिगकी प्रजाकी गणना भी खारवेलने कराई थी और वह ३५ लाख थी । जन समुदायकी गणना करानेका रिवाज मौर्योके समय सुतरां उनसे पहलेसे प्रचलित प्रगट होता है । अशोकके समयमे ही कलिगकी राजधानी तोसलि थी । खारवेलने भी अपनी राजधानी वहीं की थी। उन्होंने कोई नवीन राजधानी स्थापित की हो , यह मालम नहीं देता । उनकी राजधानीका उल्लेख 'कलिङ्गनगरी' के नामसे हुआ है। १-नागरीप्रचारिणी पत्रिका. भा० १० पृ० १०२.
SR No.010472
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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