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________________ इन्डो वैक्ट्रियन और इन्डो पार्थियन राज्य । [ २५ 1 नाको व्यक्त करनेके लिये नहवाण (नरवाहण) का आंशिक वर्णन है । उसमे भी नहवाण (नरवाहण) द्वारा धर्मस्थानके बनने व दान पुण्य करनेका समर्थन होता है । संभवत नरवाहण राज्यच्युत होनेपर दिगम्बर मुनि होगया था । राजभ्रष्ट होनेपर वह करता भी क्या ? जब कि उसको वैराग्यका साधन मिलरहा था । इतिहाससे यह भी प्रगट है कि लियक (Laaka) नामक एक व्यक्ति संभवत नहपानका पुत्र था, जिसने उत्तर भारतमे जाकर तक्षिलामें ई० पू० ४५ मे अपना राज्य जमाया था । श्रुतावतार कथा नरवाहन (नह- चाण) की ढलती उमरमे एक पुत्रका होना प्रगट करती है; क्योंकि अधिक वयतक जब नरवाहणके पुत्र नहीं हुआ तब ही उसने उक्त प्रकार पद्मावतीदेवीकी पूजा की प्रतीत होती है। मालूम होता है कि नहाण (नरवाहन) राजाके जीवनकी वास्तविक घटनाओं, अर्थात् उसको शकजातिका प्रसिद्ध नरवाहन (नहवाण) कहना, धर्मकार्यमें द्रव्य व्यय करना. अति धनवान होना, उसकी अधिक उमर में एक पुत्र होना आदि - को लेकर 'श्रुतावतार' के लेखक विबुध श्रीधरने उम कथाको अपने ढंगपर लिखा हे और यह बतला दिया है कि नरचाहन (नहवाण ) ही भूतबलि मुनि हुये थे । इन सब बातोंको देखने हुये, 'श्रुतावतार' के नरवाहन और * आवश्यक मूत्रभाप्य' के नहवाण, जिसका संस्कृत रूप वहा भी नरवाहन ही है, इतिहास - प्रसिद्ध छत्रप नहपान मानना अनुचित नहीं है, अतः कहना होगा कि दि० जैन श्रुतका उद्धार शक नहपान द्वारा हुआ था ! १ - जनिमोसो० भा० १६ पृष्ठ २५०.
SR No.010472
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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