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________________ २४] संक्षिप्त जैन इतिहास । विलक्षण है। किन्तु देग नगर व राजाके नाम इस कथाका लीला क्षेत्र भृगुकच्छके आसपास ही प्रगट करते है । देशका 'वामि' नाम अनोना है। यह गन्द गभवत नागोंके वास वामीका द्योतक है, जिससे भाव उप्त प्रदेशके होसकते है कि जिसमे नागलांक रहने हो । सिध-कच्छवी देशको यसानियोंने नागोंके कारण पाताल नाम दिया भी था। नाग लोगोंकि मूल स्थान रसातल (मध्य एशिया) के दो भागामे शक लोग ररने थे। इसी कारण भृगुकन्छके आसपासके देशको नागो-कादिक वासस्थान रूपमे दिगवराचार्य 'वामी नामये उल्लिखित करने हे। निरसन्देह वह भृगुकच्छवर्ती दंग होना चाहिये, क्योकि गिरिनगर-अकलेश्वर आदि नगर उसीके पास है। 'गर्गसंहिता मे नहपानकी राजधानीका उल्लेख 'पुर 'रूपमे हुआ है; जिसमे स्पष्ट है कि वह एक प्रसिद्ध और समृद्धिशाली नगर था। वस्तुत प्राचीन कालमे भृगुकच्छकी ऐसी ही स्थिति रहनी थी । इस अवस्थामे उसका उल्लेख वसुधरा रूपमे करना अनुचित नहीं है। उक्तश्वतावर कथा नहवाण (नहपान)का सम्पूर्ण चरित्र प्रगट करनेके लिये नहीं लिखी गई है, बल्कि माया शल्यके द्रव्यप्रणिधि भेदके उदाहरण रूपमे उसका उल्लेख किया गया है। वैसे ही 'श्रुतावतार' में भी दिगम्बर जैन आगम ग्रन्थके लिखे जानेकी घट १-इहिक्का०, भा० १ पृ० ४५९. २-जविओसो०, २४१४०८. 'खक पुर। ३-भगुकच्छ बौद्धकालसे एक प्रसिद्ध बन्दरगाह और लाट देशको राजधानी रहा है। बाजैस्मा०, पृ० २०. ४-'मायायाम्' सा च द्विधा-द्रव्यप्रणिधिः भावप्रणिधिश्च । तत्रं द्रव्यप्रणिधी उदाहरणम् ..अभिधानराजेन्द्रकोष, जविओसो, भा० १६ पृ० २९१.
SR No.010472
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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