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________________ प्राकथन । [३ । यथार्थ परिचय और उसका प्रभाव भिन्न २ कालोंमें तत्कालीन परिस्थिनिपर कैमा पडा था, यह सब कुछ बतलानेका प्रयास किया गया है । इस इतिहासको हमने 'भा० दिगम्बर जैन परिषद' के प्रस्तावानुसार कई वर्षों पहलेस लिखना आरम्भ किया था। मौभाग्य-वग इसका प्रथम भाग जिसमें जैनोंके पुराणवर्णित महापुस्पोका वर्णन है. सन् १९२६ मे ही प्रकट होगया था। उसके __लगभग छह वर्षोंके पश्चात उसके दूसरे भागका पहला खण्ड विगत वर्ष फरवरी १९३२ मे प्रकाशित हुआ था। दूसरे भागमें ई० पूर्व ६०० मे सन् १३०० तकका इतिहास लिखना इष्ट है। उस भागको तीन खण्डोमे विभक्त किया गया है। पहले खण्डमें म० महावीरके समयमे शुङ्गकाल तकका वर्णन लिखा गया है। इस दूसरे खण्डमे तबसे सन् १३०० तकका उत्तर भारतसे सम्बन्ध रखनेवाला इतिहास प्रकट किया गया है व तीसरे खण्डमे दक्षिणभारतका इनिहास संकलित करना शेप है। ___अन्तिम अग प्रस्तुत इतिहासका तीसरा भाग होगा और उसमें सन् १३०० के उपगन्त वर्तमानकाल तकका इनिहास प्रकट करना वाञ्छनीय है। किन्तु प्रस्तुत इतिहासको मात्र 'जैन इतिहास' समझना ठीक नहीं है। वस्तुत. वह जैन दृष्टिसे लिखा हुआ और जैनोंकी मुख्यताको लिये हुए भारतवर्षका इतिहास है । इस रूपमे ही उसका महत्व है। एक जिज्ञासु उसको पढ लेनेमे जैन इतिहासके साथ २ भारतवर्षके इतिहासका ज्ञान प्राप्त कर सकता है। उसके अतिरिक्त जैन इतिहास विषयका यही अपनी श्रेणीका पहला ग्रन्थ है। प्रस्तुत इतिहासके प्रथम भाग और दूसरे भागके प्रथम खण्डमें
SR No.010472
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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