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________________ २] MAAVAAAA--- - सप्ति जैन इतिहास । romeromer m • • .. mmmmmmmm इतिहासके महत्वको भुलाकर कार्ड भी गष्ट्र या जाति जीवित नहीं रह सकीं। जैनाचार्य इतिहासके महल कथा और जनश्रति । त्वमे अवज्ञान हे हैं । जैन वागमयमे प्रथमानुयोग ' का अस्तित्व इसी बातका द्योतक हे । किनु कहाजासकता है कि क्याओं और जनश्रुनियाको वाम्नविक इनिहाय को माना जाय ' यह गा तव्यहीन नही है. कितु किसी गष्ट्र या जानिके इतिहासको प्रकट करनेवाली कथाओं और जनश्रुतियोको यदि एकदम ठुकरा दिया जाय . नो फिर उस राष्ट्र या जातिका इनिहाम किम आधाग्मे लिखा जाय । अतएव श्रेयमार्ग यह है कि इतिहास-विषयक कथाओं और जनश्रुतियोंको तबतक अम्वीकार न करना चाहिये जबतक कि वह अन्य स्वाधीन साक्षी-गिलालेख आदिम असत्य सिद्ध न होजाय ! बस जैन कथाओं जनश्रुतियों या अन्य परम्परीण मान्यताओंको जैन जातिके इतिहास लिखनेमे भुलाया नहीं जासकता ! इसी बातको ध्यानमे रख करके हमने जैन कथाओ और जनश्रुतियोका भी उपयोग इस इतिहासके लिखनेमे किया हे । हा, जहापर कोई बात इतिहासमे विरुद्ध प्रतीत हुई, वहा उसको अमान्य या प्रकट कर देना हमने उचित समझा' है, क्योंकि पक्षपात इतिहासका शत्रु है । प्रस्तुत इतिहास लिखनेमें हमने इस नीतिका ही यथासंभव पालन किया है। ___ 'जैन इतिहास' जैन धर्मावलम्बियोंका इतिहास है। अतः जैन धर्म विषयक इस इतिहासमे जैन महाप्रस्तुत इतिहास और पुरुषों, राजा महाराजाओं, आचार्य विद्वानों, उसका महत्व। सघ-गणादि सम्बन्धी विशेष घटनाओंका
SR No.010472
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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