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________________ ( १७ ) जमीसो० = जर्नल आफ दी मीथिक सोसाइटी - वेंगलोर । जर एसा ० = जनरल ऑफ दी गयल ऐसियाटिक सोसायटी- लंदन | 'जैका ० = ' 'जैन कानून' (श्री० चम्पतराय जैन विद्यावा ० विजनौर १९९२८ ) । 'जंग०-' 'जैन गजट ' अंग्रेजी (मद्रास ) । जैप्र० = जैनधर्म प्रकाश व्र० शीतलप्रसादजी (विजनौर १९२७) । जैस्तू०= जैनस्तूप एण्ड अदर एण्टीकटीज ऑफ मथुरा - स्मिथ | जैसास ० = 'जैन साहित्य संशोधक' मु० जिनविजयजी (पूना) । जेसिमा ०=जन सिद्धान्त भास्कर श्री पद्मगज जैन (कलकत्ता) । जैशि सं०= 'जैन शिलालेख संग्रह' - प्रो० हीरालाल जैन (माणिकचन्द्र ग्रन्थमाला | जैहि० = जैन हितैषी सं० पं० नाथूगमजी व पं० जुगलकिशोरजी ( बम्बई ) । जैसू० (J8 ) = जैन सूत्राज ( S. E Series, Vols. XXII & XLV ). टॉरा ० = टॉडसा० कृत राजस्थानका इतिहास ( वेङ्केटेश्वर प्रेस) । डिजेवा०- ए डिक्शनरी ऑफ जैन बायोफी' श्री उमरावसिंह टॉक (आग) | तक्ष० = ए गाइड टू तक्षशिला' - सर जॉन मारशल (१९१८) । तत्वार्थ० = तत्वार्थाधिगम् सूत्र श्री उमास्वाति S. B. J. Vol. तिप० = ' तिल्लोय पण्णत्ति ' श्री यति वृषभाचार्य (जैन हितैषी भा० १३ अंक १२ ) । दिजै० = ' दि० जैन मासिक पत्र सं० श्री. मूलचन्ट किसनदास कापड़िया (सूरत) ।
SR No.010472
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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