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________________ उत्तरी भारतके अन्य राजा व जैनधर्म। भी वंगाल-विहारमें है। मानभूम जिलेके सराक लोग आज भी वहांपर फैले हुये प्राचीन जैनधर्मको प्रगट कर रहे हैं। ये प्राचीन जैन श्रावक हैं । सिंहभूम जिलेपर एक समय जैनोका अधिकार था। वहां इन प्राचीन श्रावकोंने जंगलोंमें घुसकर ताबेकी काने सोधी थीं और अपने धार्मिक स्मारक वहा बनवाये थे । वामन घाटीसे दो ताम्रपत्र १२०० ई०के मिले है जिनसे प्रगट है कि मयूरभंजके भंजवंगके राजाओंने बहुतसे ग्राम जिनमंदिरोंको भेट किये थे। इस वंशके संस्थापक वीरभद्र थे, जो एक करोड साधुओंके गुरु थे। ये जैन थे।' ऐसे ही और भी अनेक जैन लेख विखरे हुये पडे है। जो हो, बंगालमें भगवान महावीरके समयसे लेकर ७ वीं शताब्दि ई० तक जैनधर्म सफलतापूर्वक फैला हुआ था। ओड़ीसामें खारवेलके वंशजोके बाद आन्ध्रवंशका अधिकार होगया था और ये प्रायः बौद्धधर्मानुयायी ओड़ीसाके अंतिम थे । उपरांत ययाति केसरी द्वारा स्थापित राजा व जैनधर्म। केसरी वंशने वहां १२ वीं शताब्दितक राज्य किया था। उनके समयमे जैनधर्मका पुनरुत्थान हुआ मालम होता है; क्योंकि उद्योतकेसरी राजाके राज्यकालके कई जैन लेख मिले है, जिनसे वहांपर जैनाचार्यों द्वारा धर्म प्रचार होनेका बोध होता है। इन आचार्योंमें शुमचंद्र और यशनंदि उल्लेखनीय है । जब गङ्गराजाओंका अधिकार ओडीसापर हुआ तो उन्होंने चरण-ब्राह्मणोंके कहनेसे जैनियोंको बहुत सताया। इस अत्याचारसे जैनोंका अस्तित्व ही वहा मुश्किल होगया । १-पूर्व० पृ० ६५-६६ । २-पूर्व पृ० ९२-१०४। - -
SR No.010472
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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