SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 184
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६२] संक्षिप्त जैन इतिहास | सिंहलद्वीपसे जहाजो द्वारा व्यापार करता था।' तामूलक जैनोंका सिद्धक्षेत्र है । उक्त राजा और सेट सभवत ७वी ८वीं शताब्दीमें हुये होगे, क्योंकि इन शताब्दियोंमे बङ्गामे दिगम्बर जनोंका अधिक प्रावल्य था, जैसा कि चीन यात्री हुग्नत्मागक कथनमे प्रगट है ।२ ९वीं शताब्दिसे १२ वीं गतान्ति तक बंगालमे पालवणके राजाओंका अधिकार रहा था और ये बौद्धधर्मानुयायी थे। इनके बाद ११ वीं शताब्दिके लगभग सेनवंगका अभ्युदय हुआ था। सेनवंशका सम्पर्क मूलमें जैनधर्मसे प्रगट होता है, परन्तु मालम नहीं कि बंगालमे सेनवंशी राजाओंने जैनधर्मको संरक्षण दिया था या नहीं। इस प्रकार इस कालमे यहापर राजाश्रय विहीन होकर जैन धर्म अपना प्रावल्य खो चला और मुसलमानोंके आक्रमणके साथ वह यहा नष्टप्रायः होगया। किंतु वंगाल, बिहार, ओडीसा प्रातोंसे जैनोंका जो अत्यधिक पुरातत्व इस कालका मिलता है, उससे इस समय जैनधर्मका जनसाधारणमे बहु प्रचलित होना प्रमाणित है। राजग्रहीमे एक जैनगुफापरके लेखसे प्रगट है कि इसी समयके लगभग परम तेजस्वी आचार्य वैरदेवकी अध्यक्षतामे वहा एक जनसंघ शा। राजगिरीसे एक ऐसा सिक्का भी मिला है, जिनपर गुप्तकालके अक्षरोंमे : जिनरक्षितस्य ' लिखा है, इसमे उस सिकेका चालक राजा जैनधर्मानुयायी प्रगट होता है। राजगिरि जैनोंका प्राचीन तीर्थ है। मम्मेदशिखर, चम्पापुर, पावापुर, कुंडलपुर आदि जैन तीर्थ १-जैप्र० पृ० २४१-२४३ । २-वीर वर्ष ३ पृ० ३७१ । ३-वीर वर्ष ४ पृ० ३२८-३३२ । ४-बबिमोजस्मा० पृ० १६ । -
SR No.010472
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy