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________________ उत्तरी भारतके अन्य राजा व जैनधर्म। [१५३ ___ राजा था। वह विद्वानोंका बहुत बड़ा आश्र• राजा मुंज और यदाता था। उसके दरबारमें धनपाल, पद्मजैन विद्वान् । गुप्त, धनंजय, धनिक, हलायुध आदि अनेक विद्वान् थे।' मुंजनरेशसे जैनाचार्य महासेनसरिने विशेष सम्मान पाया था। मुंजके उत्तराधिकारी सिंधुराजके एक महासामन्तके अनुरोधसे उनने 'प्रद्युम्नचरित' काव्यकी रचना की थी। मुंजके दरवारी कवि धनपाल काश्यपगोत्री ब्राह्मण उज्जैनके निवासी थे। वह अच्छे विद्वान थे और जैनोंका उनसे विशेष 'समागम रहा था। धनपालका छोटा भाई जैन होगया था, परन्तु उन्हें जैनोंसे घृणा थी। इसी कारण वह जैनोंके केन्द्र उजैनको छोड़ कर धारामें जारहे, वहां उन्होंने वि० सं० १०२९ में 'पाइलच्छी 'नाममाला' नामक प्राकृत कोष अपनी छोटी बहन सुन्दरीके लिए ' बनाया था। वह भी विदुषी थी और कविता करती थी। अन्ततः धनपाल अपने भाई शोभनके उपदेशसे कट्टर जैन हो गया था। उसने जीवहिंसा रोकनेके लिये राजा भोजको उपदेश दिया था। ' तथा जैन हो जाने पर 'तिलकमञ्जरी' की रचना की थी। 'ऋषम पञ्चाशिका' भी इसी कविकी बनाई हुई है। कवि धनञ्जयने 'दशरूपक' नामका ग्रंथ बनवाया था। श्री शुभचन्द्राचार्य भी राजा मुंजके समयमें हुये थे और यह राजपुत्र थे। इन्होंने 'ज्ञानावर्णव' ग्रंथकी रचना की थी। कहते हैं कि कवि भृर्तृहरि इन्हीके भाई थे। .' १-भाप्राण०,, भा० १ पृ० १०० । २-भप्राजैस्मा० भूमिका पृ०.२० । ३-भाप्रा०, भा० १ पृ० १०३-१०४ । ४-मजैइ०, • पृ० ५४.५५।
SR No.010472
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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