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________________ १५२] संक्षिप्त जैन इतिहास । नवीं और दशवीं शताब्दिमे मध्यभारतमे भी जैनोंकी विशेष उन्नति और कीर्ति फैली हुई थी। धागके धाराका राजवंश और नरेगोन जैन धर्मको खूब अपनाया था । यह जैन धर्म। परमारवंगके राजा थे। इस वंशकी नींव उपेन्द्र नामक सरदारने ०.वीं शताब्दिमे डाली थी। परमार राजाओं द्वारा सम्कृत माहित्यकी विशेष उन्ननि हुई थी। इसी वंगमे सुप्रसिद्ध राजा भोज हुआ था। वह सन् १०१८ ई०मे धारानगरीकी गद्दीपर बैठा था। धारा उस समय मालवाकी राजधानी थी, उसने बहुतमे राज्याको जीता था। भाज बडा विद्याप्रेमी था, कहते है कि ज्योतिष शास्त्र, वास्तुविद्या. पद्यरचना आदि विपयोंपर उसने कई ग्रन्थ लिखे है। उसने धारामे एक विद्यापीठ स्थापित किया था और उसमे गिलाओपर काव्य. व्याकरण तथा ज्योतिपके ग्रन्थ खुदवाकर रक्वे थे। इस विद्यापीठको तोडकर पीछेसे मुसलमानोने मसजिद बनाई।" व्याकरणमे जैन ग्रन्थ 'कातन्त्र' के अनेक सूत्र धाराकी भोजशालामे सर्पवद्ध उकेरे हुये है। भोज एक बडा आदर्श राजा था. उसने अनेक जैन और अजैन विद्वानोका सम्मान किया था। वह सन् १०६० ई० तक राज्य करता रहा था। भोजके वंशज १३ वीं शताब्दि ई० तक मालवामे राज्य करते रहे, परन्तु अन्तमे मुसलमानोने उन्हें भी पराजित किया था। ___ मालवाके परमारोंमे मुंजनरेश भी एक पराक्रमी और विद्वान् १-भाइ० पृ० १०९। २-महिइ०, पृ० १६ ।
SR No.010472
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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