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________________ उत्तरी भारतके अन्य राजा व जैनधर्म। [१४९ अपने नैपुण्यके लिये प्रसिद्ध है। इस समय ग्वालियरमें जैनोंकी विशेष उन्नति हुई थी। दि०जैन विद्वानोंकी मान्यता भी यहा खूब थी। वि० सं० १०१३ में माधवके पुत्र महेन्द्रचंद्रने ग्वालियरके निकट मुहनिया नामक स्थानपर एक जैन मृर्तिकी प्रतिष्ठा कराई थी। महंन्द्रचन्द्र संभवतः ग्वालियरका एक राजा था । ( जर्नल आब ऐ० सो० वंगाल, भा० ३१ पृ० ३९०.) सुहनिया उस समय जैनोंका केन्द्र था। ____ मध्यभारतके बुन्देलखण्ड प्रांतमें चन्देल राजपूतोंका राज्य था। आठवीं शताब्दिमें यह देश जैजाकभुक्ति कहमध्य भारतमें जैनधर्म । लाता था । चंदेलवंशका मूल पुरुष नंनुक चन्देला था ; जिसने एक परिहार सरदारको पराजित करके बुन्देलखण्डमें अपना अधिकार जमाया था। चन्देलोंकी राजधानी महोबा थी। चंदेरी (ग्वालियर ) में भी चन्देलराजाओंने सन् ७००से ११८४ तक राज्य किया था। चन्देरीको चन्देलोंने ही वसाया था। पहाड़ी पर राजमहल है, जिसके सन्निकट अनेक जैनमूर्तियां मिलती है। महोबाके आसपास भी जैनमूर्तियोंकी बाहुल्यता है और वह चन्देल राजा परमाल द्वारा प्रतिष्ठित बताई जाती है । इन बातोंसे चन्देलवंशमें जैनधर्मकी मान्यता प्रगट होती है। सन् १००० ई०में यह राज्य उन्नतिके शिखर पर था। इस वंशमें सबसे प्रसिद्ध राजा धन (९५०-९९) और कीर्तिवर्मा (१०४९-११०० ई०) हुये थे। राजा धङ्कके राजत्वकालमें १-हिवि०, भा० ५ पृ० ७४१ । २-माई०, प्र० ११० । ३-मप्राजैस्मा०, पृ० ६३ ।
SR No.010472
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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