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________________ १४८] संक्षिप्त जैन इतिहास । न्दि तक जैनोंका प्राबल्य अधिक था । यहाके निवामियोंने ५२ जिनप्रतिमाओंकी प्रतिष्ठा कराई थी। सं० ११६८ मे यहा पर चौहान राजा उदयराजदेवका राज्य था।' अहिच्छत्र (बली ) का प्रसिद्ध राजा मयूरध्वज भी जैनी था। संभव है कि इस राजाका सम्बन्ध श्रावस्तीके ध्वञ् नामान्तक राजाओंके जैनवंशसे है । इस देशमे जैनधर्म उन्नति पर था। अहिच्छत्र ई० सन् २००४ तक बसा हुआ था। कहते है कि सन् २७५ ई० मे ग्वालियरकी स्थापना राजा सूर्यसेन द्वाग हुई थी । भोजदेव परिहार ग्वालियरके राजा (८८२ ई० ) के कनिष्ठ पौत्र विनायक और जैनधर्म। पालके वाढ कच्छवाहा वंशी वदामा वालि । यरपर अधिकार करके नवराज वंशके प्रतिछाता हुए थे। यहां एक जैनमूर्तिके पवित्र अङ्गमे उत्कीर्ण वज्रनामाकी शिलालिपिसे प्रगट है कि वह लक्ष्मणके पुत्र थे और उन्होंने ही पहले गोपगिरी दुर्गमे जयढक्का बजाया था । सास बहूके दिगम्बर जैन मंदिरमे स० ११५० व ११६० के उत्कीर्ण इस वंशके राजा महीपालके दो शिलालेखोंसे जाना जाता है कि वज्रनामाके पुत्र मङ्गल थे और उनके वंगज क्रमा कीर्तिपाल, भुवनपाल, देवपाल, पद्मपाल, सूर्यपाल, और महीपाल थे । इन सबने ग्वालियरमे राज्य किया। उपरांत मधसूदन कच्छावाहाके हाथसे ग्वालियर निकलकर परिहार वंशी क्षत्रियोंके अधिकारमें पहुंच गया था। राजा कीर्तिसिंहके समयमें ग्वालियरमें खूब शिल्पकार्य हुआथा। जैन शिल्प १-प्राजैलेसं०, भा० १ पृ०९९ । २-संपाजैस्मा०, पृ० ८१॥
SR No.010472
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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