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________________ १४६] मंक्षिप्त जैन इतिहाम। उनमेमे उडे एक जैनधर्मानुयायी थे। श्रावस्ती. विविध गजवंगामें मथुग अमाइन्ड़ा. देवगढ़ आदि म्यान जैनधर्म । जैनयम नुन्थ्य न्द्र थे। गना कीनि न्मांक मंत्री वत्मराजका एक जैनलेख मन १०२७ का राजगटीके पास मिल है।' ११ वीं गतानि । थानीने जनधर्म बहुत उन्नति पर थ । वहा पर जैन धमांनुयायी गजवंग एक दीवालसे राज्य कर रहा था । इस वंगका सर्व अंतिम राजा मुहद्वज नामक था। हाथिली नामक ग्राममें उसने मैयद सालारको लबाडमे तलवारके घाट उतरा था। मुहदृजकी इस विजयमे करीब १० वर्ष पीछे इस जैनवंशका अन्त हुआ था। नहीं है कि एक दं गजा प्रामान्तरसे लोट नहीं पाया कि न्यास्त हो चला । गत्रि भोजन निषिद्ध जानकर रानी बड़ी छटपटाई परंतु परम शीलवती राजाके छोटे भाईकी पत्नीक नीलप्रभावमे सूर्यास्त हात २ वच गया और राजाने सानन्द भोजन किया। किन्तु बाडमें गजाकी नियत्त अपने छोटे भाईकी इस साबी बी पर टल गई और उसीके गापमे इस वंशका अन्त हुआ था। श्रावस्तीक अतिरिक्त अयोध्या राजा मदीगल और सगरपुरके राजा सागर भी जैन धगंनुगयी थे। ईसवी चारहवीं गतान्जिमे फैनाबादमीगतद नानक बंगना राज्य श । इम वंशका मुख्य राजा तिलकचंद्र जैनयमानुयायी थ जिनका युद्ध नुहन्मद गजनवीक सिपहसालारसे हुआ थ। बनारसने राजा भानसेन मी जैनी थे। - स्मा०, पृ० ११ । २-संप्रान्ग०, पृ० ६५ ३-जैम०, पृ. २४०१४-समाजस्म०, पृ० ७०।
SR No.010472
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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