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________________ उत्तरी भारतके अन्य राजा व जैनधर्म। [१४५ __ अरबके मुसलमानोने भारत पर हमला करके सिन्ध प्रातको जीत. लिया था। वहांका हिन्दूराना और गनी रणक्षेत्रमे वीरगतिको प्राप्त हुये थे। किन्तु मुसलमानोके इस हमलेका अधिक प्रभाव भारतपर नहीं पडा था; बल्कि मुसलमानोंने भारतीय सभ्यतामे बहुत कुछज्योतिष और वैद्यक आदि सीग्या था । भोज परिहार समस्त उत्तरी भारतमे-पश्चिममें जूनागढ़ तक और पूर्वमे हजारीबाग तक राज्य करते थे: परंतु उनके बाद उनके उत्तराधिकारी इस राज्यको संभाल न सके । तथापि महमूद गजनवीका साथ देने आदि कारणोंसे __ यह अपना महत्व खो बैंठ।' श्री वप्पमूरि नामक जैनाचार्यने संभवतः - इसी राजा भोजके दरवारमें आदर प्राप्त किया था। इन आचार्यने राजपूतानेसे लेकर बङ्गाल तक विचरण करके जैन धर्मका प्रचार किया था । और राजाओंको जैनधर्मका भक्त बनाया था । नेपालके राजाओंको भी संभवत. उन्होंने ही जैनधर्मप्रेमी बनाया था। भोजके पूर्वज वस्त्सराज प्रतिहारका भी जैनधर्मके प्रति सद्भाव था। उन्होंने मन् ७८४ ई० में ओसिया ग्राममे एक जैनमंदिर बनवाया था। किन्तु प्रतिहार (परिहार) वंशके वाढ सन् १०९० ई० के लगभग गहग्वार (राठौर ) राजपूतोका अधिकार कन्नौज पर हो गया था। इसी वंशमे राजा जयचन्द्र हुआ था, जिसे महम्मदगोरीने लडाईमें हराया था। आजकलके संयुक्त प्रान्तमे भी उस समय कई राज्य थे और १-माइ०, पृ० १०८-१०९। २-दिगम्बर जैन, वर्ष २३ पृ० ८९ | ४-एनुअल रिपोर्ट ऑफ आर्क० सर्वे इडिया, १९०६-७ १० २०९। १०
SR No.010472
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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