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________________ ११४] संक्षिप्त जैन इतिहास। अपरकोटकी गुफायें वह ही प्रतीत होती है जिनमें धरमेनाचार्य अपने मंच सहित रहते थे। नालम होता है कि गिरिनगरके निकट इन गुफाओमे जैनोंका एक नघ बहुन दिनामे रहता चला आरहा था। सारालत उन विगिरोके नभ्यमे गुजरातमे जैनधर्मकी विशेष उन्नति थी । मचमुच यहा पर जैनधर्मकी गति एक बहुत प्राचीन कालसे है। छत्रपवंगके बाद गुजरातमे गुतराजा अधिकारी हुये थे। मालूम होता है कि उनके समयमे भी गुजमध्यकालमें गुजरात रातमे जैनधर्म उन्नत था। मिद्धमेन दिवाकर पर गुप्त बल्लभी आदि प्रभृति जैनाचार्य जैनधर्मका उद्यात करते हुये राज्य व जैनधम । विचर रहे थे । किन्तु इसके पहले जैनाचार्य श्री कुन्दकुन्दस्वामीका गुजगतमे शुभागमन हो चुका था । प्राचीन जैनों और नवीन अर्द्धकालक (खण्डवस्त्रधारी= श्वेतपट) जैनोंमे जो गिरिनार तीर्थक सम्बन्ध्मे झगडा होरहा था, उसको उन्होंने सरस्वती देगकी पाषाण मूर्तिको वाचाल करके निवटा दिया था। गुप्तोंके बाद वल्लमीवंगके राजा लोग गुजरातपर शासन करने लगे थे। इनकी राजधानी वल्लभीमे थी। चीन यात्री हुएनसांगने इस नगरको बड़ा समृद्धिनाली पाया था। वहांपर सौसे ऊपर करोडपति थे और अनेक माथु थे । ध्रुवपद नामक राजा बौद्ध था । वहा मकान व मंदिर इंटों और लडीके होने थे । गजय तीर्थपर एक जैन मंदिर लकडीका था, जो राजा कुमार १-जविभोसो०, भा० १६ पृ० ३०-३१। २-कैहिइ०, भा० १ पृ० १६६ । ३-दिगम्बर जैन डायरेक्टरी पृ० ७६५ ।
SR No.010472
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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