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________________ -- गुजरातमें जैनधर्म व श्वे० ग्रंथोत्पत्ति। [११३ एक 'मुदर्शन नामक झील बनवाई थी। बहुत संभव है कि यह श्रेष्टीपुत्र भी जैनधर्मानुयायी हो। मौर्य चंद्रगुप्तका प्रपौत्र सम्प्रति परम जैन धर्मानुयायी था, और उसने अनेक जैनमंदिर बनवाये थे, यह लिखा जाचुका है । उसका राज्य गुजरातमे भी था और वहा भी उसके बनाये हुये मंदिर आजतक स्थित बताये जाते है, यद्यपि वह मौर्यकाल जितने प्राचीन नहीं है।' सम्प्रतिके भाई शालिशूकने सौराष्ट्रको विजय किया था और जैनधमकी विशेष प्रभावना की थी अत स्पष्ट है कि मौर्यकालसे गुजरातमें जैनधर्मका उत्कर्ष खूब था । मौर्य साम्राज्यके बाद गुजरातमें विदेशी यूनानियोंका अधिकार जमा था। सम्राट् खारवेलने जैन धर्मोन्नतिके अनेक कार्य किये थे। हो सक्ता है कि गुजरातमे भी उन्होंने जैनतिहासिक कालमें धर्म प्रभावनाके लिये प्रयास किया हो ! राजा गुजरातका जैनधर्म। मिनेन्डर तो जैनधर्मानुयायी प्रगट ही है और' उसका राज्य भी गुजरात ( सौराष्ट्र ) में था। कालकाचार्यके कथानकसे प्रगट है कि इन विदेशियोंमें जैनसाधु धर्मप्रचार करते रहते थे। यही बात राजा नरवाहन (नहपान)की कथासे प्रकट है । इन विदेशियोंमे अनेकोंने जैनधर्म ग्रहण किया था। और उनने धर्म प्रभावना करनेके सह प्रयत्न किये थे । छत्रप नहपानने जैनमुनि होकर जैन सिद्धान्तका उद्धार गुजरातसे ही किया था। अंकलेश्वरमें सर्व प्रथम जैनग्रंथ लिपिवद्ध हुये थे। छत्रप रुद्रसिंहने जूनागढ़में वावा प्याराका मठ और अपरकोटकी गुफायें जैनोके लिये निर्मित कराइ थीं, यह प्रगट किया जा चुका है। १-राइ०, भा० १ पृ. ९४ ।
SR No.010472
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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