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________________ ११०] - -- - संक्षिप्त जैन इतिहास । हजार बौद्धभिक्षु इसमे शामिल हुये थे । तीन हजार ब्रामण और जैन पडित थे । राजाके मित्र ह्वेनसागसे किसीने शाम्रार्थ नहीं किया। बल्कि उससे चिढकर किन्हीं विपक्षियोंने सभामटपमे आग लगाकर उसका अन्त कर दिया। कहते है कि इस कार्यके उपलक्षमे ५०० ब्राह्मण देशमे निर्वामित कर दिये गये थे। राजा हर्षने सवही धर्मालम्बियोंको उपहार दिये थे। जैना एवं अन्य लोगोंको भी २० दिन तक यह उपहार मिले थे। इस वर्णनमे कन्नौजके आसपास जैनोंका पर्याप्त संख्यामे प्रभावशाली होना प्रमाणित है। यही कारण है कि उन्हें राज-सम्मेलनमे भुलाया नहीं गया था। ___ जब हुएनत्साग वंगालमे पहुंचा तो वहा भी उसे जैनोंकी आबादी 'मिली। पुन्ड्रवर्द्धन (उत्तरीय बंगाल) मे निर्ग्रन्थ लोग (दिगम्बर जैन) सबसे अधिक थे । कामरूपके दक्षिगमे समतट और पूर्वीय बंगालमें भी दिगम्बर जैन असंख्य थे। कलिङ्ग तो जैनोंका मुख्य केन्द्र था और दक्षिण भारतमें भी दिगम्बर जैनोका प्रावल्य था। गुजरात और काठियावाडमे भी जैनोंकी संख्या अधिक थी। वल्लभीनगर उनका केन्द्र था और मालवामें उज्जैन भी दिगम्बर जैन मुनियोंका मुख्यस्थान बना हुआ था। साराशत हुएनत्सागके वर्णनसे जैनोंका प्रभावशाली अस्तित्व उस समय मिलता है। इतिहासकारोंकी मान्यता है कि सन् ५५०-७५३ ई०के मध्यवर्ती कालमें बौद्धधर्मके ह्रास होनेपर जैनधर्म और पौराणिक हिन्दू मतने वहुत उन्नति की थी। १-लाभाइ०, पृ० २४२-२४३ । २-हिमालइ०, पृ० २०५। ३-भाप्रासइ०,भा०४ पृ०३८ । ४-कलि०, पृ० १८। ५-लाभाइ०, 'पृ० २८३ ।
SR No.010472
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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