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________________ - - हर्षवर्धन और चीनी यात्री हुएनत्सांग। [१०९ मालूम होता है कि सिकंदर महानके समयसे ही दिगम्बर जैनोका प्राबल्य यहा घटा नहीं था। पेशावरके पड़ोसमे स्थित काश्मीरमें भी जैन प्रभाव कार्यकारी था, ऐसा प्रतीत होता है। वहापर मेघवाहन राजा जैनोंके समान अहिसा धर्मको पालन करनेकी स्पर्धा करता था। उसने यज्ञमें हिसाका निषेध किया था और एक झीलके किनारे पक्षियों और मछलियोंको न मारनेकी आज्ञा निकाली थी।' काश्मीरके एक दूसरे राजा अनन्तिवर्मन (सन् ८५५-८८३ ई०) ने भी ऐसी ही राजाज्ञा प्रगट की थी। इन उल्लेखोंसे काश्मीरमें जैनमुनियोका प्रभावशाली होना प्रगट है। इस समयके मुनिजन प्राचीन दिगम्बर भेषमे रहते थे, यह वात हुएनत्सांगके कथनसे प्रमाणित है । वह कहता है कि 'निग्रंथ (Li-h1) लोग अपने शरीरको नग्न रखते है और बालोको नौंचडालन है। उनके देहकी चमड़ी चटखजाती है और उनके पैर सख्त होने और फटजाते है। इन्हीं मुनिजनोकी प्रधानता प्रायः सारे देशमे थी। हुएनत्सांगको समूचे भारतवर्ष में बल्कि उसके बाहर भी जैनी विखरे हुए मिले थे। मध्य देशमे भी उनका प्रभाव पर्याप्त था। यह बात राजा हर्प द्वारा बुलाये गये एक सार्वधर्म सम्मेलनके विवरणग्ने प्रगट है। यह सम्मेलन सम्प्रदाय--विशेषका नहीं था। सन् ६४३ ई० के फरवरी और मार्च मासमें कन्नौजके बाहर इस सम्मेलन के लिये बने हुए एक राजशिविरमें हर्षने डेरा किया था। चार १-राजतरिङ्गणी ३-७; १-१२ व ५-११९।२-३-जमीसो० भा० १८ पृ० ३१ । ४-ट्रैवेल्स ऑफ ह्यन्तसाग, (st. Julien, Vienna; p.224)५-इंसेजै०पृ०४५-४६।६-हिमालई पृ० २०७।
SR No.010472
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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