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________________ ___७८] संक्षिप्त जैन इतिहास । - गैयेथे। दिगम्बर और श्वेतावर दोनो सप्रदायोंके ग्रथोंसे प्रकट हे कि इस कालके लगभग तीर्थोके सवन्धमे दोनों सप्रदायोंमे झगडा हुआ था। - कुढकुटाचार्यने उज्जयंत (गिरिनार) पर सरस्वतीकी पापाण मृतिको वाचाल करके नग्न रहनेवाले निग्रंथ साधुओंके पक्षको सवल बनाया था। ___श्वेताबराके पूर्वज ( Fori Tuuners ) प्राचीन मूर्तियोकी आकृतियोंको नहीं बढल पाये थे अर्थात् इस समयतक जैन मूर्तिया बिलकुल वस्त्र चिह्न रहित नग्न बनाई जाती थीं, जैसे कि मथुरा और खण्डगिरिकी गुफाओंवाली प्राचीन मूर्तियोंसे प्रमाणित है। प्राचीन मूर्तियोंको भले ही श्वेताबर बदलनेमे असमर्थ रहे हों, कितु उन्होंने नवीन मूर्तियोंको वस्त्र चिह्नाङ्कित बनाना प्रारम्भ कर दिया था, इसमे संशय नहीं। जैन सघमे हुई इस क्रातिका कटु परिणाम यह निकला कि वि० सं० १३६ (सन् ८० ई०)मे दिगंवर और श्वेतावर सप्रदायोंकी जड खूब पुख्ता जम गई और उनमे आपसी विरोध पड गया। भद्रबाह द्वितीय संभवत इस समय दि० सम्प्रदायके अध्यक्ष थे। उपरोक्त वर्णनने स्पष्ट है कि भगवान् महावीरजीके निर्वाण ___ कालसे लेकर ईसवी सन्के प्रारंभिक काल तत्कालीन जैनधर्म । तकके समयमे जैनधर्ममे बड़ा अंतर पड गया था। द्वादशागवाणी बिलकुल लुप्त होगई थी। उसके स्थानपर नये २ ग्रन्थ आचार्यों द्वारा रचे जाने लगे थे। उधर १-विशेषके लिये देखो 'वीर' वर्ष ४ पृ० ३०४-३०९ । २-'प्रवचन परीक्षा' प्रकरण १-जैहि० भा० १३ पृ० २८९ । ३-इऐ०, भा० २० पृ० ३४२ । ४-जैहि०, भा० १३ पृ० २९०। ५-इऐ०, भा० २० पृ० ३४२-३४३ ।
SR No.010472
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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