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________________ ज्ञात्रिक क्षत्री और भगवान महावीर । [११. पड़गाहकर भक्तिपूर्वक आहारदान दिया था । रामा और नगरका एक ही नाम, गणराज्य का द्योतक है और यह ऊपर कहा ही जा. चुका है कि यह कुलपुर नाथवंशी क्षत्रियोंकी विशेष वस्ती 'कोल्लग ही थी और कुलनृप वहांके क्षत्रियों के प्रमुख नेता थे । भगवानका पारणा उन्हीं के यहां हुआ था । कुलपुरसे भगवान दशरथपुरको गये थे । वहां भी इसी कुलनृपने जाकर भगवानको दुध और चांवलका माहार दिया था । इसप्रकार परम पात्रको माहारदान देकर इस रानाने विशिष्ट पुण्य संचय किया था। उसके यहां देवोंने रत्नवृष्टि आदि पंचश्चर्य किये थे। इसके उपरान्त भगवान महावीर वनको वापस चले गये। मनाक का और ध्यानमग्न होगये थे। फिर वहांसे वे उपसग। अन्यत्र विहार कर गये थे। कितने ही स्था. नोंमें विचरते हुये वे उज्जयनी पहुंचे थे। अभी वे अल्पज्ञ थे और इस कारण मौनसे रहते हुये, केवल आत्मस्वरूपमें लीन रहते थे। उज्जयनी पहुंचकर वह ' अतिमुक्तक' नामक स्मशानभूमिमें रात्रिके समय प्रतिमायोग धारण करके, ध्यानलीन खड़े थे । उस समय भव नामक रुद्रने उनपर अनेक प्रकार के उपमर्ग किये थे; किन्तु वह उन 'विभव' अर्थात संसार रहितको जीत न सका था। अन्तमें उसने उन निननाथको नमस्कार किया और उनका नाम अतिवीर रक्खा था। १-3 पु. ६०-६१२ । २-भम० पृ. ९८ । ३-3 पु० ६.२-६१३।
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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