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________________ ६०] संक्षिप्त जैन इतिहास । कर पूर्ण स्वतंत्र होजाता है। जैनोंके निकट विशेप आवश्यक नो जल है, सो इम भेषमें कपड़ोंके न होने के कारण उसकी भी जरूरत नहीं पड़ती। वस्तुतः हमारी बुगई भलाईकी जानकारी ही हमारे मुक्त होने में बाधक है । मुक्तिलाभ भरनेके लिए हमें यह भूल जाना चाहिये कि हम नग्न हैं। जैन साधु इस बातको भूल गये हैं। इसीलिये उनको कपड़ों की आवश्यक्ता नहीं है। वह परमोष्ट और उपादेय दशाको पहुंच चुके हैं। इस दिगम्बर भेषको केवल जनोंने ही नहीं प्रत्युत हिन्दुओं ईसाइयों और मुसलमानोंने भी माधुपनका एक चिन्ह माना है। सारांशतः यह प्रगट है कि भगवान महावीरने गृह त्याग करके इसी दिगंबर भेषको धारण किया था । श्वेताम्बर जैन आचार्य अन्ततः कहते हैं कि " उन (भगवान महावीर ) के तीन नाम इसप्रकार ज्ञात है कि उनके माता-पिताने उनका नाम वर्द्धमान रखा था, क्योंकि वे रागद्वेपसे रहित थे; वे 'श्रमण' इसलिये कहे जाते थे कि उन्होंने भयानक उपसर्ग और कठिन कट सहन किये थे, उत्तम नग्न अवस्थाका अभ्यास किया था और सांसारिक दुःखोंको सहन किया था और पूज्यनीय 'श्रमण महावीर', वे देवों द्वारा कहे गये थे। दीक्षा ग्रहण कर लेने के उपरान्त भगवान महावीरने ढाई भगवानका प्रथम दिनका उपवाप्त किया और उसके पूर्ण होनेपर. पारणा। जब वह मुनि अवस्थामे सर्व प्रथम आहार ग्रहण करने के लिये निकले तो कुलनगरके कुलनृपने उनको -ममबु० पृ० ५९-६० । २-Js, T. P. 193.
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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