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________________ ५६] संक्षिप्त जैन इतिहास । कराने के लिये तबतक ब्रह्मचारी रहकर कठिन इन्द्रियनिग्रह और परीषह जय करनेके मार्गमें पग बढ़ानेका निश्चय कर लिया था। अपने पिताके राजकार्यमें सहायता देते हुए और गृहस्थकी रंगरलियोंमें रहते हुए भी भगवान संयमका विशेष रीतिसे अभ्यास कर रहे थे। उनके हृदयपर वैराग्यका गाढा रंग पहलेसे ही चढ़ा हुमा था । सहसा एक रोज उनको आत्मज्ञान प्रकट हुआ और वह उठकर 'वनषण्ड' नामक उद्यानमें पहुंच गए। माता-पिता आदिने उनको बहुत कुछ रोकना चाहा; किन्तु वह उन सबको मीठी वाणीसे प्रसन्न कर विदा ले आये ! मार्गशीर्ष शुक्लाकी दशमीको वह अपनी 'चन्द्रममा' नामक पालखीमें सारूढ़ हो नायखंड नकी गृहस्थदशामें ही उनके माता पिताका स्वर्गवास होगया था और उनके ज्येष्ठ भ्राता नन्दिवर्धन राज्याधिकारी हुए थे। बौद्ध ग्रन्थोंने भी म. बुद्धको माताका जन्मते ही परलोकवासी होना लिखा है तथा उनमें उनके भाई नन्द बताये गये हैं। ( साम्स० पृ० १२६ ) म० बुद्ध "सम्बोधि' प्राप्त कर टेनेके पश्चात् भी कवलाहार करते थे। ( महावग्ग SBE पृ० ८२) भगवान महादीरके विपयमें भी श्वेताम्बर शास्त्र यही कहते हैं। म० बुद्धके जीवनमें उनके भिक्षु संघमें मतमेद खड़ा हुआ था (महावग्ग ८); वेताम्बर भी कहते है कि भगवानके जमाई जमालीने उनके विरुद्ध एक असफल आवाज़ उठाई थी। चौद्ध कहते हैं कि परिनिवानके समय भी म० बुद्धने उपदेश दिया था। और उनके शरीरान्तपर लिच्छिवि, मळ आदि राजा आये थे (Benl's Life of Buddha, 101-131) श्वेताम्बर भी कहते है कि भगवान सहावीरने पावामें पहुंचकर निर्वाण समयमें कुछ पहले तक उपदेश दिया था और उनके निर्वाणपर लिच्छिवि, मल्ल आदि राजगण आये थे। 'बुद्धको मृत्यु उपरान्त उनका संघ वैशाली में एकत्रित हुआ था और उसने पिटक ग्रंथोंको व्यवस्थित किया था। इसके बाद अशोकके समय में
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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