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________________ ज्ञात्रिक क्षत्री और भगवान महावीर। [५५ W ब्रह्मचर्य अवस्थामें राजसुखका उपभोग करके भगवान महाभगवान महावीरका वीरने गृहत्याग किया था। इससमय इनकी गृहत्याग। अवस्था करीब तीस वर्षकी थी। उन्होंने ससमयके राजोन्मत्त राजकुमारों और आजीविकों एवं ब्राह्मण ऋषियों जैसे साधुओंको मानो पूर्ण ब्रह्मचर्यका महत्व हृदयंगम तो दिगम्बरानायके शास्त्र उसका उल्लेख न करते जव वे अन्य तीर्थकरोंका विवाह हुआ लिखते हैं। चौद्ध ग्रन्थों में भी भगवानकी पुत्री आदिका कुछ उल्लेख नहीं मिलता है। श्वेताम्बर शास्त्रोंमें भगवानकी जीवनीका चित्रण बहुत कुछ म० बुद्धके जीवनचरित्रके ढंगपर हुआ है। ऐसा विदित होता है कि पाली पिटकोंको सामने रखकर श्वे० प्रथोकी रचना ई. की ६ ठी श० में हुई है। इसका सप्रमाण वर्णन हम अगाड़ी करेंगे। यहां इतना वतला देना पर्याप्त है कि पाश्चात्य विद्वान् भी इस बातको स्वीकार करते हैं कि श्वेताम्बरोंने महावीरजीका जीवन वृतान्त म० बुद्धके जीवनचरित्रके अनुसार और उसीके आधारसे लिखा है। (इन्डियन सेकृ ऑफ दी जैन्स, पृ० ४५) 'ललितविस्तर' और 'निदानकथा' नामक बौद्रग्रन्थोंमें जैसा चरित्र गौतम बुद्धका दिया हुआ है; उससे इवेताम्बरों द्वारा वर्णित भ० महावीरके चरित्रमें कई बातों में सादृश्यता है। ( केहिइ०, पृ० १५६ ) उदाहरण के तौरपर देखिये, यह सादृदय जन्मसे ही प्रारम्भ होजाता है। 'म० बुद्धके विषयमें कहा गया है कि उनको मालूम था, वह स्वर्गस चय होकरके अमुक रीतिसे जन्म धारण करेंगे। भ० महावीरके सम्बन्धमें भी श्वेताम्बर ग्रन्थ यही कहते हैं कि उनको अपने आगमनका ज्ञान तीन प्रकारसे था । युवावस्थाको लीजिये तो जैसे बौद्ध कहते हैं कि बुद्धका विवाह यशोदा नामक राजकन्यासे हुआ था, वैसे ही श्वेताम्बर भी बतलाते है कि महावीरजीका विवाह यशोदरा नामक राजकुमारीसे हुआ था। वेताम्बर शास्त्र कहते है कि भगवानके माता पिताने उनको दीक्षा ग्रहण करनेसे रोका था; बुदके सम्बन्धमें यही कहा जाता है। स्वेताम्बरोंका मत है कि भगवा
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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