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________________ १०.] संक्षिप्त जैन इतिहास। राजा-महाराजा भी सारे देशपर अपना नाधिपत्य फैलाना आवश्यक समझते थे। सारांशतः प्राचीनकाल से ही भौगोलिक दृष्टिसे सारा देश एक ही समझा जाता रहा है । अब भी यह बात ज्योंकी त्यों है। भारत एक देश है और उसकी मौलिक एकता भाव यहाँके निवासियोंमें सदा रहा है। किन्तु इस मौलिक एकताके होते हुये भी, जिस प्रकार वर्तमान में भारत भनेक प्रान्तोंमें विभक्त है, उसी प्रकार भगवान महावीरजीने समय में भी बंटाहमा था। इस समय और उस समय भारतकी राजनैतिक परिस्थितिमें बड़ा भारी अंतर यह था कि आज समृचा भारत एक साम्राज्य के अन्तर्गत शासित है, किन्तु उस समय यह देश भिन्नर राजाओंके माधीन अथवा प्रजातंत्र संघोंकी त्रछायामें था। हां, अशोक मौत्रके समय भबश्य. ही प्रायः सारा भारत उसके आधीन होगया था। म. गौतमबुद्ध जन्मके पहिलेसे भारत सोलह राज्यों में तत्कालीन मुख्य विभक्त था; किन्तु जैनशास्त्र बतलाते हैं कि राज्य। इन सोलह राज्योंके मस्तित्वमें आनेके जरा ही पहिले सार्वभौम चक्रवर्ती सम्राट् ब्रह्मदत्तके समयमें भारत साम्राज्य एक था और उसकी राज्य व्यवस्था सम्राट ब्रह्मदत्तके आधीन थी। सम्राट् ब्रह्मदत्तका घोर पतन उसके अत्याचारों के कारण हुमा और उसकी मृत्युके साथ ही भारत साम्राज्य तितर-वितर होकर निम्नलिखित सोलह राज्यों में बंटगया: (१) अङ्ग-राजधानी चम्पा; (२) मगध-राजधानी रामगृह; (३) काशी-रा. पा० बनारस; (४) कौशल (आधुनिक नेपाल)रा० श्रावस्ती; (५) वज्जियन-रा: वैशाली; (६) मल्ल-रा. पावा
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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