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________________ अंतिम केवली श्री जम्बूस्वामी। [१७५ रका जन्म इन्हींकी कोखसे हुआ था। जिप्त समय यह गर्भमें आये थे उससमय इनकी माताने हाथी, सरोवर, चांवलोका खेत, धूम रहित मग्नि और जामुनके फल-यह पांच शुभ स्वप्न देखे थे। जामुनके फलोंको देखनेके कारण इनका नाम 'जम्बू कुमार' खखा गया था। इन्होंने बाल्यकालमें बड़ी ही कुशलता पूर्वक समग्र शस्त्रशास्त्र विषयक विद्याओं में योग्यता प्राप्त करली थी। किन्तु इनका स्वभाव वचपनसे ही उदाप्तीन वृत्तिको लिये हुए था । युवा होनेपर भी इन्हें कोई विकार नहीं हुआ था। इनका आदर राजगृहके राजदरबारमें अधिक था। एकदा जम्बूस्वामीकी केरलदेशके राना मृगाङ्कने श्रेणिकके पाप्त सहाय वीरता। ताके लिये एक दूत भेना था। इसका कारण यह था कि मृगाकपर इंसद्वीप (लंका)के राजा रत्नचूतने आक्रमण किया था और वह उनकी राजकुमारी विलासवतीको वलात् लेनाना चाहता था। मृगांकको यह मामा था। वह राना श्रेणिकको अपनी क्या देना चाहता था। इघर जम्बूकुमारके पराक्रम और शौर्य की प्रशंसा पहिलेसे ही थी। राना श्रेणिकने उनके ही आधीन अपनी सेनाको राजा मृगांककी सहायताके लिये भेना था। जम्बू कुमारने अपने बाहुबल और रणकौशलसे रत्नचूलको हरा दिया था । और राना मृगांकने प्रसन्न होकर विलासवतीका विवाह श्रेणिकके साथ किया था। एक वैश्यपुत्रमें इस पगक्रम और संग्राम-कौशल का होना थानालके 'वनियों के लिये समुचित शिक्षा पानेका मादर्श है। १-वेताम्बर केवलं जम्बवृक्ष देखा बतलाते हैं- जैसा २०मा०'... अंक ३ वीर पृ०.२)
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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