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________________ - १५८ ] संक्षिप्त जैन इतिहास | 1 आकर्षित कर चुके हैं। महावीरस्वामीके निर्वाण मी प्राचीन घटनाका ठ ेक पता न रखना सचमुच जेनोंके लिये एक बड़ी लज्जाकी बात है । और आज इस पुरानी चातका बिलकुल टोक पता लगा लेनेका वायदा करना धृष्टता मात्र है । इतनेपर भी उपलब्ध प्रमाणोंसे जिस निरापद मन्तव्यपर हम पहुंचेंगे उसे प्रगट करना अनुचित नहीं है। दुर्भाग्यवश आनसे करीब डेढ़ हजार वर्ष पहले भी वीर निर्वाणान्दके विषय में विभिन्न मत थे । लगभग तीसरी शता'बिदके ग्रंथ 'त्रिलोक प्रज्ञप्ति' की निम्नगाधाओं से वे इसप्रकार प्रगट हैं:'वीरजिणं सिद्धिगदे चउसइगिट्ठि वास परिमाणो । कार्लमि अदिक्कते उप्पण्णा एत्थ सगरामो ॥ ८६ ॥ अहवा वीरे सिद्धे सहस्सणवर्कमि सगसयन्भहिये । पणसीदिमि यती पणमाले सगणिओ जादा ॥ ८७ ॥ - ॥ पाठान्तरं ॥ चौदस सहस्त सगसय तेणउदी वास काल विच्छेदे । वीरेसर सिद्धीदा उप्पण्णा सगणिओ अहवा ॥ ८८ ॥ ॥ पाठान्तरं ॥ पंचवरिसेतु । अहवा ॥ ८६ ॥ णिव्वाणे दीरजिणे छन्वाससदेतु पणमसिसु गदेसु संजादा सगणिओ अर्थ - "वीर भगवान के मोक्षके बाद जब ४६१ वर्ष बीत गये तब यहाँपर शक नामका राजा उत्पन्न हुआ | अथवा भगवानके - मुक्त होनेके बाद ९७८९ वर्ष ५ महीने वीतनेपर शक राजा हुआ । · ( यह पाठान्तर है ) अथवा वीरेश्वर के सिद्ध होने के १४७९३ वर्ष · बाद शक राजा हुआ ( यह पाठान्तर है ) अथवावीर भगवानके - निर्वाणके ६०.९ वर्ष और ५ महीने बाद शुकराना हुआ ।". • (जैहि०, भा० १३ ४० ३३)
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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